संजीव गौतम की ग़ज़लें
एक दरोगा है वो दुनिया का दरोगाई दिखाता है। जिसे चाहे बनाता है, जिसे चाहे मिटाता है। अमन के दुश्मनों को रात में वो देके बंदूके, सुबह से फिर वयम रक्षाम का नारा लगाता है। सियासत का खिलाड़ी है बड़ी चतुराई से देखो, रियासत को लुटाकर वोट की फसलें उगाता
अकबर सिंह अकेला की कविता पानी – पानी
पानी पानी नहिं रहा, पानी बना विशेष | मात भारती कौ भुवहिं, रूप कुरूपहिं भेष ||1|| तापमान की बेरुखी, इसकी कुत्सित चाल | जन मानस का हो रहा, हाल यहाँ बेहाल ||2|| पेड़ काटि हमने दिए, किनको दैहैं दोष | नदियाँ नाले सूखिहै, दुर बरखाई कोष ||3|| फट- फट मोटर
माँ पर शिव कुमार ‘दीपक’ के मार्मिक दोहे
जननी करती उम्र भर , जीवन पथ आलोक । माँ के आगे क्षुद्र हैं , धरा, गगन , सुरलोक ।।-1 घाट-घाट का जल पिया, बुझी न मन की प्यास । माँ के चरणों में हुआ , जन्नत का आभास ।।-2 हे मेरे भगवान जी , ऐसा दो आशीष । सारी
शिव कुमार “दीपक” के गीत
गीत- छलक आँख से आँसू आये छलक आँख से आँसू आये । मन की लागी कौन बुझाये ।। सूरज का रथ जब आता है । तन मन में आग लगता है ।। घर सांझ हमारे आती है । एकाकी पन दे जाती है ।। नीड़ बनाते बीते रजनी , महा
अवनीश यादव के दस दोहे
जो करते माँ बाप का, निज कर से अपमान। कभी न होगा जगत में, उनका तो यशगान।। जब जब माँ ने गोद में, लेकर किया दुलार। जन्नत जैसा सुख मिला, अद्भुत माँ का प्यार।। जब जब भी झुककर छुए, मैंने माँ के पाँव। तब तब मुझको मिल गयी, आशीषों की
कु० राखी सिंह शब्दिता द्वारा रचित सरस्वती वंदना
शारदे माँ शारदे तू , ज्ञान हम पर वार दे । दूर कर अज्ञान का तम, अब जहां को तार दे ।। वंदना से आरती हो, लेखनी ही थाल हो । धूप दीपक काव्य का हो, छंद की जयमाल हो ।। गीत सब हो जायें अक्षत, ऐसी वीणा तान दो
होली पर शिव कुमार ‘दीपक’ की कलम ✍ से कुछ खास-
होली के रंग, दीपक के संग रंग पर्व अब देश में, लाये नई बहार । जले होलिका द्वेष की, मन में पनपे प्यार ।। रीत प्रेम सद भाव की,अदभुत एक मिसाल । प्रेम विरोधी से मिला, लेकर रंग गुलाल ।। प्रेम -रीत सद भाव का, होली का त्यौहार । आओ
प्रोमिस डे पर विष्णु सक्सेना की कलम से कुछ खास-
हम हैं शीशे से टूट जाएंगे, तुम न आये तो रूठ जाएंगे, कोशिशें कामयाब होती है- वादे जितने हैं टूट जाएंगे। मेरे सांचे में ढल के देख ज़रा, दो क़दम साथ चल के देख ज़रा, मेरे प्रोमिज का रंग पक्का है- अपने गालों पे मल के देख ज़रा। रचनाकार-कवि विष्णु
टेडीबियर डे पर विष्णु सक्सेना की एक खास रचना-
हम अंधेरे नहीं उजाले हैं, आपके साथ रहने वाले हैं प्यार से बांह में भरो, हम भी टेडीबीयर से भोले भाले हैं ज़िंदगी ग़म से जोड़ मत देना, बुलबुला हूँ मैं फोड़ मत देना, टेडीबीयर तो इक खिलौना है- दिल समझ कर के तोड़ मत देना। रचनाकार- कवि विष्णु सक्सेना
आज चॉकलेट डे पर प्रसिद्द कवि विष्णु सक्सेना की कविता
बुझ न पाए वो प्यास मत देना, कोई लम्हा उदास मत देना, घोल दे ज़िंदगी मे कड़वाहट- ऐसी मुझको मिठास मत देना। द्वार जब दिल के खोल देती हो, सच मे मिश्री सी घोल देती हो, मुझको मिल जाती चॉकलेट तभी- जब भी मीठा सा बोल देती हो। “विष्णु सक्स्सेना”