——आह का अनुवाद—–
अश्रु की गंगा नयन से पीर ने जब-जब उतारी,
याद आती है तुम्हारी….याद आती है तुम्हारी….
मौन साधा है अधर ने पूर्ण है पर बात सारी,
याद आती है तुम्हारी ….याद आती है तुम्हारी….
प्यार का संसार था वो कल्प मुझको याद है,
सुर्ख अधरों की छुअन भी अल्प मुझको याद है,
प्रेम का पथ छोड़ने को तुम विवश क्यूँ हो गये,
हर कदम पर साथ का संकल्प मुझको याद है..
क्या कहें किस को सुनायें आप बीती जग हँसेगा,
देह रहती तर बतर आँखें बनी निर्झर हमारी….
याद आती है तुम्हारी ….याद आती है तुम्हारी….
तुम बसी हर साँस में कैसै भुला दूँ तुम कहो,
धूल में उपहार सारे क्यूँ मिला दूँ तुम कहो,
नेह के जो ख़त विरह में बन गये संजीवनी,
उन ख़तों को मैं प्रिये कैसे जला दूँ तुम कहो..
मौन को तुम क्या पढ़ोगी शब्द से जब हो अपरचित,
मैं व्यथा कैसे लिखूँ अब प्राण पर है साँस भारी…
याद आती है तुम्हारी ….याद आती है तुम्हारी….
गीतकार
– इन्द्रपाल सिंह “इन्द्र”
मो0 -7060880533, 8126992764