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गीत- छलक आँख से आँसू आये

छलक आँख से आँसू आये ।
मन की लागी कौन बुझाये ।।

सूरज का रथ जब आता है ।
तन मन में आग लगता है ।।
घर सांझ हमारे आती है ।
एकाकी पन दे जाती है ।।
नीड़ बनाते बीते रजनी ,
महा मिलन की आस लगाए ।
मन की लागी  ———-

पागल मन को आस घनेरी ।
प्राण प्रिये वो छाया मेरी ।।
मन्दिर में जब – जब जाता हूँ।
मूरत में सूरत पाता हूँ ।।
धरा गगन पर खोज चुका हूँ ,
अभिलाषा के पंख लगाये ।
मन की लागी —————-

जाना ही था , कह कर जाती ।
कुछ तो कहती, कुछ सुन जाती।।
मैं खूब मनाता भगवन को ।
समझा लेता पागल मन को ।।
खोज रहा उसको गीतों में ,
जो मन में विश्वास जगाये ।
मन की लागी —————–

शिव कुमार “ दीपक “
बहरदोई, सादाबाद
हाथरस (उ० प्र०)

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