प्रपोज डे पर कवि विष्णु सक्सेना की एक रचना
अश्क आंखों से आज बहने दो, अपना हर दर्द मुझको सहने दो, उम्र भर तुमसे जो न कह पाया आज वो बात मुझको कहने दो। आ निकल और बढ़ के देख ज़रा, तू ज़माने से लड़ के देख ज़रा, एक सागर है प्यार का मुझमे- मेरी आँखों में पढ़ के
कार के करिश्मे: काका हाथरसी
रोजाना हम बंबा पर ही घूमा करते उस दिन पहुँचे नहर किनारे वहाँ मिल गए बर्मन बाबू बाँह गले में डाल कर लिया दिल पर काबू कहने लगे- क्यों भई काका, तुम इतने मशहूर हो गए फिर भी अब तक कार नहीं ली ? ट्रेनों में धक्के खाते हो, तुमको