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ना तो कोई भी सबूत है
ना गवाह है पास।
फिर ईश्वर भी के होने का
होता है अहसास।।

तोड़ तोड़कर कण को हमने कण कण में तोड़ा।
फिर कण के टूटे कण कण को आपस में जोड़ा।।
तत्व तत्व में छिपे तत्व का सारा तत्व निकाला,
धरती क्या अम्बर तक हमने कुछ भी ना छोड़ा।।

ना ही उसका पता मिला कुछ
ना ही मिला निवास।
फिर भी ईश्वर के होने का
होता है अहसास।

यदि होता खुशबू जैसा तो सब लेते पहचान।
यदि प्रकाश जैसा होता तो फिर भी लेते जान।।
होता अगर वस्तु जैसा तो छू लेते, चख लेते,
यदि होता वह ध्वनि जैसा सुनते सबके कान।।

उसे जानने के सब के सब
असफल हुए प्रयास।
फिर भी ईश्वर के होने का
होता है अहसास।

सब ग्रन्थों का सार यही है ईश्वर एक विचार।
जिसका जैसा मन है वैसा कर लेता स्वीकार।।
जग का सृष्टा और नियंता आखिर कोई तो है,
जिसके ऊपर कभी किसी का नहीं चला अधिकार।।

कोई माने और किसी ने
कहा अंधविश्वास।
फिर भी ईश्वर के होने का
होता है अहसास।।

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