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मथुरा 13 नवंबर । भावी दंत चिकित्सकों को अपने शैक्षणिक, नैदानिक और सतत शिक्षा के माध्यम से सामान्य आपात स्थितियों की रोकथाम, निदान और प्रबंधन से परिचित होना चाहिए। चिकित्सकों ही नहीं आम कर्मचारियों को भी बेसिक लाइफ सपोर्ट का उचित प्रशिक्षण देना चाहिए ताकि उन्हें पता हो कि आपातस्थिति में क्या करना है। यह बातें मैक्स इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एज्यूकेशन साकेत, नई दिल्ली के सहयोग से के.डी. डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल  मथुरा में आयोजित दो दिवसीय बेसिक लाइफ सपोर्ट (बीएलएस) प्रशिक्षण में विशेषज्ञ दंत चिकित्सकों ने बीडीएस और एमडीएस के छात्र-छात्राओं को बताईं। के.डी. डेंटल कॉलेज के प्राचार्य और डीन डॉ. मनेश लाहौरी के मार्गदर्शन में आयोजित दो दिवसीय प्रशिक्षण सत्रों में भावी दंत चिकित्सकों और संकाय सदस्यों को अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (एएचए) के नवीनतम दिशानिर्देशों के अनुरूप सीपीआर, वायुमार्ग प्रबंधन और स्वचालित बाह्य डिफाइब्रिलेटर (एईडी) जैसी आवश्यक जीवन रक्षक तकनीकों की जानकारी एएचए-प्रमाणित प्रशिक्षकों डॉ. नाजिया हामिद (सलाहकार और प्रमुख, आपातकालीन विभाग, के.डी. सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, मथुरा), डॉ. उमर (आगरा), अभिषेक और पारुल (एमआईएमई, साकेत नई दिल्ली) ने दी। विशेषज्ञों ने बताया कि किसी भी दंत चिकित्सालय में कोई भी चिकित्सीय आपात स्थिति उत्पन्न हो सकती है, इसे सफलतापूर्वक प्रबंधित करने के लिए तैयारी की आवश्यकता होती है। दंत चिकित्सकों को एक बुनियादी कार्ययोजना बनानी चाहिए जिसे सभी कर्मचारी समझ सकें। इसका उद्देश्य रोगी की देखभाल तब तक करना है जब तक वह पूरी तरह से ठीक न हो जाए। दंत चिकित्सा में लगभग सभी चिकित्सीय आपात स्थितियों का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मस्तिष्क या हृदय में अपर्याप्त ऑक्सीजन की आपूर्ति को रोकना या ठीक करना है। किसी भी आपात स्थिति में दंत चिकित्सक या कर्मचारी को रोगी को उचित स्थिति में रखते हुए उसके वायुमार्ग, श्वास और रक्त संचार का आकलन और प्रबंधन करना होगा। अगर कोई मरीज़ बेहोश हो गया है, तो यह मस्तिष्क में ऑक्सीजन युक्त रक्त की कमी का परिणाम है। अगर किसी मरीज़ को तीव्र एनजाइना पेक्टोरिस की समस्या है, तो यह हृदय की मांसपेशियों में विशिष्ट स्थानों तक ऑक्सीजन युक्त रक्त की अपेक्षाकृत कमी का परिणाम है। विशेषज्ञों ने कहा कि प्रत्येक दंत चिकित्सालय में सभी चिकित्सा आपात स्थितियों के प्रबंधन में यह सुनिश्चित करना शामिल होना चाहिए कि मस्तिष्क और हृदय तक ऑक्सीजन युक्त रक्त पहुंचाया जा सके। अगर दंत चिकित्सक और उनकी टीम के सदस्य इस सिद्धांत को याद रखें, तो बाकी सब कुछ समझ में आ जाएगा। विशेषज्ञों ने कहा कि यह सिद्धांत बुनियादी जीवन समर्थन (बीएलएस) में प्रशिक्षण का आधार है, जिसे कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) भी कहा जाता है।

प्रशिक्षण सत्र के समापन अवसर पर  प्राचार्य और डीन डॉ. मनेश लाहौरी ने बताया कि के.डी. डेंटल कॉलेज ने शैक्षणिक उत्कृष्टता और कौशल-आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। डॉ. लाहौरी ने कहा कि संकाय सदस्यों और छात्र-छात्राओं में नैदानिक क्षमता तथा आपातकालीन तैयारी को बढ़ाने के लिए इस तरह की सहयोगात्मक पहलों का वह समर्थन करते हैं। प्रशिक्षण के सफल समापन पर सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। दो दिवसीय बेसिक लाइफ सपोर्ट प्रशिक्षण में विभागाध्यक्ष डॉ. विनय मोहन, डॉ. उमेश चंद्र प्रसाद, डॉ. अतुल, डॉ. नवप्रीत तथा प्रशासनिक अधिकारी नीरज छापड़िया ने छात्र-छात्राओं का मार्गदर्शन किया। प्रशिक्षण की सफलता में कमेटी सदस्यों  डॉ. सिद्धार्थ सिंह सिसौदिया, डॉ. अनुज गौर, डॉ. विवेक शर्मा, डॉ. मनीष भल्ला, डॉ. राजीव तथा डॉ. जुही दुबे का अहम योगदान रहा। अंत में डॉ. लाहौरी ने अतिथि वक्ताओं का बहुमूल्य समय और अनुभव प्रदान करने के लिए आभार माना।

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