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हाथरस 26 सितम्बर । शारदा विश्वविद्यालय आगरा में आज निमाई पाठशाला की संस्थापक एवं प्रख्यात वक्ता श्रीमती रेणुका पुंडरीक गोस्वामी ने “मनुस्मृति के अनुसार धार्मिक होने की विशेषताएँ” विषय पर विस्तृत व्याख्यान प्रस्तुत किया। श्रीमती गोस्वामी ने अपने भाषण की शुरुआत यह कहकर की कि धर्म केवल कर्मकांड या पूजा-अर्चना नहीं, बल्कि व्यक्ति के विचारों, भावनाओं और आचार का प्रतिबिंब है। उन्होंने बताया कि मनुस्मृति में वर्णित धर्म के दस लक्षण—धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रियनिग्रह, धी, विद्या, सत्य और अक्रोध—व्यक्ति के जीवन और समाज के उत्थान में आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।

उनके भाषण के मुख्य बिंदु इस प्रकार थे:

  1. धृति (धैर्य) – कठिन परिस्थितियों में भी अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना।
  2. क्षमा (Forgiveness) – दूसरों की त्रुटियों को माफ करना और नकारात्मक भावनाओं को त्यागना।
  3. दम (Self-control) – इच्छाओं और वासनाओं पर संयम।
  4. अस्तेय (Non-stealing) – दूसरों के अधिकारों और वस्तुओं का सम्मान।
  5. शौच (Purity) – बाहरी और आंतरिक शुद्धता।
  6. इन्द्रियनिग्रह (Sense-control) – इन्द्रियों को अनुशासन में रखना।
  7. धी (Wisdom / विवेक) – सही निर्णय लेने में बुद्धि का प्रयोग।
  8. विद्या (Knowledge) – शिक्षा और विशेषकर नैतिक व आध्यात्मिक ज्ञान का महत्व।
  9. सत्य (Truthfulness) – वाणी, विचार और कर्म में सत्य का पालन।
  10. अक्रोध (Absence of anger) – क्रोध व नकारात्मकता पर नियंत्रण।

श्रीमती गोस्वामी ने उदाहरणों के माध्यम से समझाया कि कैसे ये गुण न केवल व्यक्तिगत सफलता बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद करते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों से अनुरोध किया कि ये लक्षण शिक्षा, कार्य और दैनिक जीवन में उतारें। उनका संदेश था कि यदि हम अपने जीवन में ये दस धर्मलक्षण अपनाएँ, तो हम न केवल सच्चे धर्म के अनुयायी बनेंगे, बल्कि समाज के लिए आदर्श उदाहरण भी प्रस्तुत करेंगे। इस अवसर पर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. (डॉ.) जयंती रंजन ने कहा कि भारतीय शास्त्रों और परंपराओं में वर्णित नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी प्राचीन काल में थीं। उन्होंने विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि आधुनिक शिक्षा और प्राचीन मूल्यों का संगम ही एक संतुलित, संवेदनशील और सफल नागरिक का निर्माण करता है। डीन छात्र कल्याण प्रो. शैलेंद्र सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय का उद्देश्य केवल डिग्री प्रदान करना नहीं, बल्कि चरित्रवान और जिम्मेदार नागरिक तैयार करना भी है। उन्होंने कहा कि पढ़ाई के साथ-साथ यदि हम इन दस धर्मलक्षणों को अपने जीवन में शामिल कर लें, तो किसी भी चुनौती का सामना सहजता से किया जा सकता है। कार्यक्रम में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी सभी शिक्षकगण, विद्यार्थी एवं स्टाफ बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन आनंदित चौहान ने किया। व्याख्यान ने विद्यार्थियों और स्टाफ को भारतीय संस्कृति, धर्म और नैतिकता के महत्व से जोड़ते हुए उन्हें जीवन में इन सिद्धांतों को अपनाने की प्रेरणा दी।

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