
लखनऊ 25 सितम्बर । प्रदेश सरकार भू-जल स्तर बढ़ाने और वर्षा जल संरक्षण के लिए विशेष अभियान चला रही है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत खेतों में मेड़बंदी (Field Bunding) को बढ़ावा दिया जा रहा है। यह भारतीय कृषि परंपरा की सबसे पुरानी और प्रमाणित विधि है, जिसमें खेत के ऊपर मेड़ बनाई जाती है और मेड़ पर पेड़ लगाए जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जिस खेत में जितना पानी रुकेगा, वह खेत उतना ही उपजाऊ होगा। मेड़बंदी से न केवल भू-जल संचय होता है, बल्कि खेत में नमी बनी रहती है, भूमि का कटाव रुकता है, मृदा के पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं और जैविक खाद स्वतः तैयार होती है। साथ ही मेड़ों पर पशुओं को हरा चारा और किसानों को अतिरिक्त उपज भी मिलती है। पुरखों की परंपरा रही है कि मेड़ पर छायादार, फलदार और औषधीय पेड़ जैसे—सहजन, करौंदा, अमरूद, नींबू, कटहल, शरीफा आदि लगाए जाएँ, जिनसे अतिरिक्त आय, जैविक खाद और पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसानों से आह्वान किया है कि “खेत का पानी खेत में ही रोकें”। उनका कहना है कि जब भूमि में जल होगा तभी नए संसाधन चलेंगे। आज भूमिगत जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है, ऐसे में वर्षा जल को रोकने का सबसे सरल उपाय मेड़बंदी ही है। प्रदेश के बुंदेलखंड समेत कई इलाके जहां खेती वर्षा जल पर निर्भर है, वहां मेड़बंदी के माध्यम से खेतों को उपजाऊ बनाने का काम किया जा रहा है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार यह कोई बड़ी तकनीक नहीं बल्कि किसानों की मेहनत और श्रम से संभव एक कारगर उपाय है।














