
इलाहाबाद 19 दिसंबर । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे बालिग जोड़ों को बड़ी राहत देते हुए कहा कि यह गैर-कानूनी नहीं है और ऐसे जोड़ों की जान और स्वतंत्रता की सुरक्षा करना राज्य का संवैधानिक दायित्व है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बालिग व्यक्ति अपनी मर्जी से किसी के साथ भी रह सकता है और परिवार या समाज का कोई भी व्यक्ति उनके शांतिपूर्ण जीवन में दखल नहीं दे सकता। यह आदेश विवेक कुमार सिंह की एकल पीठ ने आकांक्षा सहित 12 रिट याचिकाओं पर सुनवाई के बाद दिया। कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) सर्वोच्च है। सिर्फ इस आधार पर कि याचिकाकर्ताओं ने शादी नहीं की है, उन्हें उनके मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। लिव-इन रिलेशनशिप अपराध नहीं है, चाहे समाज इसे स्वीकार करे या न करे। कोर्ट ने राज्य सरकार की दलील खारिज कर दी कि लिव-इन रिलेशनशिप सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करता है और इसे सुरक्षा देना राज्य पर गैर-कानूनी बोझ है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों लता सिंह और एस. खुशबू का हवाला देते हुए कहा कि सहमति से साथ रह रहे वयस्कों का रिश्ता अपराध नहीं है। अधिकारियों को निर्देश दिया गया कि यदि जोड़ों को खतरा है तो वे आदेश की प्रति के साथ पुलिस कमिश्नर, एसएसपी और एसपी से संपर्क करें। पुलिस यह सुनिश्चित करने के बाद कि दोनों बालिग हैं और सहमति से साथ रह रहे हैं, तुरंत सुरक्षा प्रदान करेगी। साथ ही कोर्ट ने कहा कि बिना एफआईआर के कोई जबरन कार्रवाई नहीं की जाएगी। सभी याचिकाकर्ताओं को राहत देते हुए कोर्ट ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली।












