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मथुरा 08 दिसम्बर । बच्चों में दांतों का गलत संरेखण (टेढ़े-मेढ़े दांत) एक आम समस्या है, जो आनुवांशिकी, अंगूठा चूसना, मुंह से सांस लेना या दूध के दांतों के जल्दी गिरने जैसे कारकों से होती है। यह अक्सर बड़े होने पर अपने आप ठीक हो जाती है, लेकिन कुछ मामलों में ऑर्थोडोंटिक उपचार (ब्रेसेस या अलाइनर्स) की आवश्यकता होती है, इसलिए दंत चिकित्सक से नियमित जांच कराना महत्वपूर्ण है ताकि भविष्य की समस्याओं से बचा जा सके। यह बातें के.डी. डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल, मथुरा में आयोजित हैंड्स-ऑन वर्कशॉप में मुख्य वक्ता डॉ. दीपेश प्रजापति ने भावी दंत चिकित्सकों और फैकल्टी सदस्यों को बताईं।

डॉ. दीपेश प्रजापति ने “फ़्यूचर रेडी पीडियाट्रिक प्रैक्टिस-अनलॉकिंग अलाइनर थेरेपी फॉर किड्स” विषय पर अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि बच्चों में दांतों के संरेखण की समस्याएं आम हैं। ये उनके दांतों के आपस में जुड़ने और उनके मुंह के विकास को प्रभावित कर सकती हैं। संरेखण की कुछ सबसे आम समस्याओं में टेढ़े-मेढ़े दांत, उनके बीच गैप और काटते समय दांतों का ठीक से न मिलना शामिल हैं। ये समस्याएं, जिन्हें मैलोक्लुजन कहा जाता है, आनुवंशिकी, दंत रोगों और अंगूठा चूसने जैसी मौखिक आदतों के कारण हो सकती हैं।

डॉ. प्रजापति ने बताया कि बचपन में ही ऑर्थोडोंटिक उपचार शुरू करने के कई लाभ हैं। इससे बच्चे की मुस्कान और चेहरे की बनावट में सुधार आ सकता है, जिससे उसका आत्मविश्वास बढ़ता है। शुरुआती उपचार में अक्सर सरल तरीकों का इस्तेमाल होता है और बाद में जटिल प्रक्रियाओं की ज़रूरत कम हो जाती है। इस अवस्था में बच्चे आमतौर पर बेहतर सहयोग करते हैं, जिससे प्रक्रिया आसान हो जाती है। साथ ही  समस्याओं का जल्दी समाधान करने से आगे चलकर दांत निकालने या जबड़े की सर्जरी जैसी गम्भीर समस्याओं से बचने में मदद मिल सकती है। कुल मिलाकर, जल्दी उपचार शुरू करने से बच्चे के मौखिक स्वास्थ्य के लिए दीर्घकालिक परिणाम बेहतर होते हैं।

डॉ. प्रजापति ने बताया कि पारम्परिक ब्रेसेस वर्षों से पसंदीदा समाधान रहे हैं, लेकिन आधुनिक दंत चिकित्सा ने एलाइनर्स को अधिक आरामदायक और विवेकपूर्ण विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है लिहाजा बच्चों की प्रभावी मौखिक देखभाल के लिए सही एलाइनर चुनना बेहद जरूरी है। यह व्याख्यान आधुनिक क्लीनिकल प्रैक्टिस से जुड़ी नवीनतम जानकारियों, स्पष्ट अवधारणाओं और आवश्यक व्यावहारिक सुझावों से परिपूर्ण रहा। हैंड्स-ऑन सत्र ने प्रतिभागियों को विशेषज्ञ मार्गदर्शन में सीखे गए तकनीकी कौशलों का प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान किया, जिससे सीखने की प्रक्रिया और सशक्त हुई।

सीडीई की सफलता में कमेटी सदस्य डॉ. सिद्धार्थ सिसोदिया, डॉ. अनुज गौड़, डॉ. मनीष भल्ला, डॉ. विवेक शर्मा, डॉ. राजीव एवं डॉ. जूही का महत्वपूर्ण योगदान रहा। सीडीई में विभागाध्यक्ष डॉ. विनय मोहन, डॉ. सोनल गुप्ता, डॉ. अजय नागपाल एवं डॉ. शैलेन्द्र सिंह चौहान आदि उपस्थित रहे। के.डी. डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल के डीन और प्राचार्य डॉ. मनेष लाहौरी ने रिसोर्स परसन डॉ. दीपेश प्रजापति का आभार मानते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रम छात्र-छात्राओं के शैक्षिक विकास, कौशल वृद्धि और व्यावसायिक उत्कृष्टता को नई दिशा और प्रेरणा प्रदान करते हैं।

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