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मथुरा 28 नवंबर । प्रदेश में पहली बार संस्कृति विश्वविद्यालय में शुरू हुई दो दिवसीय अंर्राष्ट्रीय गोष्ठी में जब प्रख्यात विद्वानों ने वेदों पर श्री अरविंद के द्वारा डाले गए प्रकाश के बारे में उपस्थित श्रोताओं और विद्यार्थियों को बताया तो संतोष मैमोरियल आडिटोरियम में तालियों और प्रशंसा के स्वर गूंज उठे। वक्ताओं ने बताया कि कैसे श्री अरविंद ने वेदों की टीका कर दुनिया को बताया कि हमारे वेद कितने वैज्ञानिक और संपूर्णता लिए हुए हैं। वक्ताओं ने युवा पीढ़ी को श्री अरविंद के द्वारा दिए गए ज्ञान के अध्ययन के लिए प्रेरित किया।

संगोष्ठी के मुख्य अतिथि नेशनल असेसमेंट एंड एक्रिडिटेशन काउंसिल (नैक) के चेयरमैन प्रोफेसर अनिल सहस्रबुद्धि ने कहा कि 21वीं सदी भारत की है। यह सच है कि भारतीय परंपरा के बारे में दुनियां को अभी नहीं पता। हमें दुनियां को वेदों को विस्तार से बताने की जरूरत है। हमारे वेद ही हैं जो सबके कल्याण और उत्थान की बात करते हैं। भारत की सही परंपरा के बारे में बताने की जरूरत है। पांच साल पहले एक राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश में लागू हुई थी जिसमें कौशलयुक्त शिक्षा, मानवीय मूल्य को स्थान दिया गया। उन्होंने कहा कि सरकारी व्यवस्था जिम्मेदरीपूर्ण और ईमानदारी होनी चाहिए। गुरु और विद्यार्थियों के बीच संबंध बहुत अच्छे होने चाहिए। हमारे वेदों में सारी बातों का समावेश है। उन्होंने विमान शास्त्र के बारे में बताया कि हमारे यहां तो पुष्पक विमान बना लिया गया था। उन्होंने कहा कि हमारे युवा विद्यार्थियों के लिए वेदों की बड़ी उपयोगिता है। वर्तमान में वेद बहुत उपयोगी हैं और वैज्ञानिक हैं।

विशिष्ठ अतिथि उप्र तीर्थ विकास परिषद के वाइस चेयरमैन शैलजा कांत मिश्रा ने उपस्थित लोगों को बड़े सहज तरीके से बताया कि जिसकी आत्मा परमात्मा से मिल जाए वो योगी है और श्री अरविंद एक योगी थे। उन्होंने श्री अरविंद के पारिवारिक जीवन के बारे में विद्यार्थियों को जानकारी देते हुए बताया कि आईसीएस परीक्षा 11वें नंबर पर उत्तीर्ण करने वाले श्री अरविंद ने कैसे आजादी की आधारशिला रखी। श्री अरविंद ने ही बताया कि सनातन धर्म ही राष्ट्रीयता है। उन्होंने कहा कि अभी तक हम वेदों की चर्चा ही कर रहे हैं जबकि श्री अरविंद ने बहुत पहले ही वेदों पर टीका कर सब स्पष्ट कर दिया था। धर्म को जानने के लिए वेदों के पास जाना होगा। व्यास भाष्य में पतंजलि कहा है कि हर वस्तु की एक योग्यता है और जो शक्ति उसकी योग्यता से मिला दे वो धर्म है। श्री अरविंद के अनुसार वेदों में बताए ज्ञान को आज की वैज्ञानिकता आवश्यकता से जोड़ा जाएगा तभी भविष्य की चुनौतियों से निबटा जा सकेगा। उन्होंने कहा कि श्री अरविंद ने वेदों की बात करते-करते उस योगी ने स्वाधीनता संग्राम में देश के नौजवानों को ऐसा प्रेरित किया कि उन्होंने देश के लिए अपनी जान दे दी। अनेक स्वतंत्रता सैनानियों के नामों का उल्लेख करते हुए कई उद्धरण दिए। श्री मिश्रा ने कहा कि आज का आयोजन श्री अरविंद की प्रेरणा से भगवान करा रहे हैं। उन्होंने युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि सिर्फ मौज-मस्ती से काम नहीं चलेगा। अगर ऐसा ही किया तो देश डूब जाएगा। आपके अंदर जो आत्मा है वही सबके अंदर है। सबका स्वरूप एक है। सबके लिए उठें और सबके लिए बांटें यही आध्यात्मिकता है।

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर श्रीनिवास वारखेड़ी ने एक कार्यशाला का जिक्र करते हुए बताया कि इस कार्यशाला में कुछ विदेशियों ने कहा कि ये भारतीय हैं जिनका कोई दर्शन नहीं है। यह सही नहीं है, हमारे यहां के लोग सोचते हैं फिर उसका अनुसारण करते हैं, सिर्फ लिखे हुए का अनुसरण नहीं करते। जेनजी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी सबूत मांगती है। एशियन काल में जो बुद्धिमान होते थे उन्हें वेदमूर्ति के नाम से बुलाया जाता था। हमारे देश की परंपरा ही हमारा धर्म और हमारी परंपरा पुरातन और सनातन है। परंपरा को समझने के लिए तीन शब्द समझने होंगे, सत्यं, शिवम और सुंदरम। एक कहानी के माध्यम से बताया कि हमको विश्व गुरु बनना है।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय मथुरा के कुलपति डा.अभिजीत मित्रा ने एक कहानी के माध्यम बताने की कोशिश कि हमको वेदों को जानने के लिए उनमें डूबना होगा। साक्क्षी ट्रस्ट कर्नाटक के मैनेजिंग ट्रस्टी, ओरियंटल स्टडी के प्रो. आरवी जहागीरदार ने हमारे शिक्षा के संस्थान बच्चों पर केंद्रित होने चाहिए न कि शिक्षकों पर। उन्होंने बताया कि श्री अरविंद ने वेदों के चार हजार मंत्रों का अनुवाद किया था। उन्होंने गुरु और शिष्य के संबंधों पर विस्तार से बात की। मेडिकल अससमेंट एंड रेटिंग बोर्ड पूर्व अध्यक्ष डा. रघुराम भट्ट ने विद्यार्थियों को संस्कृत भाषा में अपना वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि सबसे पहले वेदों के बारे में जानें उनके प्रति श्रद्धा रखें। विद्यार्थियों को संस्कृत भाषा सीखनी चाहिए। अगर हम किसी विषय को जानना चाहते हैं तो हमें उसकी तह तक पहुंचना होगा। भक्ति हमें धर्म और कर्म से जोड़ती है, यह भारतीय परंपरा है जो किसी अन्य देश में नहीं मिलती।

संगोष्ठी अरविंद सोसायटी कर्नाटक के चेयरमैन डॉ. अजीत सबनीस ने कहा कि भारत एक जमीन का टुकड़ा नहीं बल्कि एक शक्ति है। हमारे वेद अमर नदी के समान हैं। उन्होंने कहा कि श्री अरविंद आधुनिक सभ्यता वाले ऋषि हैं। श्री अरविंद वेदों को ध्वनि और मंत्रों को अनुभूति और प्रेरणा का स्रोत हैं। अंत में सभी अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए श्री अरविंद सोसायटी (उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड) के चेयरमैन विष्णु गोयल ने कहा कि आज का यह सत्र हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि संस्कृत विश्व की सबसे वैज्ञानिक भाषा मानी गई है, इसका सबको अध्ययन करना चाहिए। संस्कृति विवि के कुलाधिपति डा. सचिन गुप्ता द्वारा दिए गए स्वागत भाषण में उन्होंने विद्यार्थियों को वेदों को जानने पर जोर दिया कहा कि हमें अपने वेदों से ज्ञान की वो वृद्धि होती है जो और कहीं से नहीं हो सकती। संगोष्ठी का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन, वंदेमातरम के पाठ और श्री अरविंद और मां के चित्रों के समक्ष पुष्प अर्पित कर हुआ। संगोष्ठी के दौरान अतिथियों का शाल ओढ़ाकर, स्मृति चिह्न देकर सम्मान किया गया। संगोष्ठी के दौरान संस्कृति विवि की सीईओ डा. श्रीमती मीनाक्षी शर्मा और कुलपति प्रो. एमबी चेट्टी की उपस्थिति भी महत्वपूर्ण रही।

 

 

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