अलीगढ़ 14 सितम्बर । मंगलायतन विश्वविद्यालय में शनिवार को पारंपरिक विरासत को संरक्षित करने में भारतीय दृश्य और प्रदर्शन कलाओं की भूमिका विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन हुआ। संगोष्ठी का आयोजन भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) के सहयोग से दृश्य एवं कला विभाग द्वारा किया गया था। संगोष्ठी में देशभर से पधारे कला विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे तो वहीं, शोधार्थियों ने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
प्रथम सत्र में विशिष्ठ अतिथि राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता डा. रामबली प्रजापति द्वारा विभिन्न तरह के पत्थरों के संबंध में प्रस्तुति दी। द्वितीय सत्र में अतिथियों का अभिनंदन करते हुए कुलपति प्राे. पीके दशोरा ने कहा कि हम जैसा देखेंगे वैसी कला कृति पाएंगे। कलाकार को एक व्यापक दृष्टि रखनी चाहिए। कुलसचिव ब्रिगेडियर समरवीर सिंह ने कहा कि कलाकार संदेश को कला के माध्यम से प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करते हैं। वह इस कार्यक्रम में बखूबी प्रस्तुत किया गया है।
अवधेश प्रताप सिंह ने कहा कि प्राचीन काल में यज्ञ ऐसा माध्यम थे जो संपूर्ण शांति प्रदान करते थे। आधुनिक संगीत विधाओं वही पद्धति पाई जाती है। आईसीएचआर समन्वयक डा. भेद प्रकाश सिंह ने कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए आईसीएचआर द्वारा भविष्य में भी इस तरह के कार्यक्रम में सहयोग प्रदान करने का आश्वासन दिया। डा. अर्का देव भट्टाचार्य ने कहा कि आधुनिक होती दुनिया को देखते हुए शिक्षा के क्षेत्र में भी परिवर्तन लाना हाेगा। देबाशीष चक्रवर्ती ने सेमिनार रिपोर्ट प्रस्तुत की। विभागाध्यक्ष डा. पूनम रानी ने सभी का आभार प्रकट किया। राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। संचालन डा. नियति शर्मा ने किया। संगोष्ठी में प्रो. राजीव शर्मा, प्रो. रविकांत, प्रो. अनुराग शाक्य, डा. संतोष गौतम, डा. संजय पाल, डा. अनुराधा यादव, डा. रामकृष्ण घोष, देवाशीष चक्रवर्ती, विलास फालके, अजय राठौर, उदय कुशवाह अादि थे।