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जो करते माँ बाप का, निज कर से अपमान।
कभी न होगा जगत में, उनका तो यशगान।।

जब जब माँ ने गोद में, लेकर किया दुलार।
जन्नत जैसा सुख मिला, अद्भुत माँ का प्यार।।

जब जब भी झुककर छुए, मैंने माँ के पाँव।
तब तब मुझको मिल गयी, आशीषों की छाँव।।

मंदिर को मानें सभी, माँ को माने कौन।
माँ सेवा के नाम पर, हो जाते हैं मौन।।

कैसे जीओगे भला, तुम जीवन बिन मात।
जिस माँ से तुमको मिली, जीवन की सौगात।।

जो जननी को कष्ट दे, वह सुत है बेकार।
हो सकता उसका नहीं, जीवन भर उद्धार।।

माता रखती कोख में, बच्चे को नौ माह।
जब देती है जन्म तो, सहे प्रसब की आह।।

गोद खिलाती सिखाती, चलना उँगली थाम।।
लेती है पुचकार कर, मीठे मीठे नाम।।

ऐसी माता को कभी, देना मत सन्ताप।
बृद्धाश्रम में छोड़कर, नहीं कमाना पाप।।

कर सेवा माँ बाप की, घर बैठे सब धाम।
मन्दिर जाने से नहीं, पायेगा आराम।।

अवनीश यादव

 

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