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मथुरा 17 मार्च । महिलाएं प्राचीनकाल से ही भारतीय संस्कृति और समाज की मुख्य कड़ी रही हैं। महिलाएं  परिवार के साथ-साथ समाज की रीढ़ हैं, इनके बिना सामाजिक विकास और परिवर्तन असम्भव है। उक्त सारगर्भित उद्गार जी.एल. बजाज ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस मथुरा द्वारा “समावेशी भविष्य का निर्माण: सामाजिक परिवर्तन में महिलाओं की भूमिका” विषय पर आयोजित परिचर्चा में प्राची कौशिक संस्थापक, व्योमिनी सोशल फाउंडेशन ने व्यक्त किए।

प्राची कौशिक ने कहा कि भारतीय महिलाएं प्राचीनकाल से ही राष्ट्र और समाज के विकास में अपना अमूल्य योगदान दे रही हैं। विभिन्न सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों में महिलाओं ने अहम भूमिका निभाई है। वर्तमान समय में हमारा राष्ट्र महिलाओं की उपलब्धियों से गौरवान्वित है। सरकार द्वारा जहां महिलाओं के कल्याण के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं वहीं महिलाओं के शोषण को रोकने के लिए भी व्यापक कदम उठाए गए हैं। आज की महिला अबला नहीं बल्कि सबला है। प्राची कौशिक ने अपने सम्बोधन में महिलाओं को सामाजिक परिवर्तन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा किए तथा छात्राओं का विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावशाली योगदान देने के व्यावहारिक उपायों पर मार्गदर्शन किया।

संस्थान की निदेशक प्रो. नीता अवस्थी ने महिलाओं के नेतृत्व की महत्ता पर अपने विचार साझा किए तथा समाज के विकास में उनके योगदान पर बल दिया। प्रो. अवस्थी ने कहा कि अब जमाना बदल गया है। आज पंचायती राज और स्थानीय निकायों में महिलाओं को आरक्षण देकर उन्हें स्थानीय राजनीति में सीधे तौर पर जोड़ा गया है। महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी योग्यता के बूते समाज और राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे रही हैं। प्रो. अवस्थी ने कहा कि समाज के विकास में महिलाओं का योगदान बहुमुखी और महत्वपूर्ण है। वे शिक्षा, चिकित्सा, अर्थव्यवस्था, राजनीति, संस्कृति जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जिससे समाज की प्रगति और विकास में मदद मिलती है।

महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष डॉ. शिखा गोविल ने परिचर्चा का शुभारम्भ करते हुए नारी सशक्तीकरण के महत्व पर प्रकाश डाला। इतना ही नहीं उन्होंने महिलाओं के लिए अधिक सशक्तीकरण और समावेशिता की आवश्यकता पर जोर दिया। डॉ. गोविल ने कहा कि महिलाएं शिक्षा के माध्यम से ज्ञान प्राप्त कर इसे दूसरों तक पहुंचाती हैं, जिससे समाज साक्षर होता है। महिलाएं राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान देती हैं, चाहे वे नौकरी करती हों, व्यवसाय चलाती हों या फिर घरेलू काम करती हों।

इस अवसर पर डॉ. शताक्षी मिश्रा की एक भावनात्मक कविता ने परिचर्चा में संवेदनशीलता का विशेष स्पर्श जोड़ा, जिसकी उपस्थित छात्राओं और वक्ताओं ने मुक्तकंठ से सराहना की। परिचर्चा का प्रभावी संचालन इंजीनियर ऋचा मिश्रा, विवेक भारद्वाज और महिला प्रकोष्ठ की सदस्य स्तुति गौतम ने किया। अंत में ऋचा मिश्रा ने सभी वक्ताओं, आयोजकों तथा प्रतिभागियों का समावेशी एवं समानतापूर्ण समाज को बढ़ावा देने में योगदान के लिए आभार माना।

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