वॉशिंगटन 20 सितंबर । अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एच-1बी वीजा के नियमों में बड़ा बदलाव किया है। इसके तहत अब अमेरिकी कंपनियों को विदेशी उच्च कौशल वाले पेशेवरों को नौकरी देने के लिए प्रति व्यक्ति 1 लाख डॉलर फीस चुकानी होगी। इससे पहले यह फीस लगभग 1000 डॉलर थी। यह कदम अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा और वीजा प्रणाली के दुरुपयोग को रोकने के लिए उठाया गया है। व्हाइट हाउस के स्टाफ सेक्रेटरी विल शार्फ ने कहा कि अब केवल अत्यधिक कुशल पेशेवर ही अमेरिका में काम कर सकेंगे, और अमेरिकी कर्मचारियों की नौकरियों को प्राथमिकता दी जाएगी।
भारत पर पड़ेगा सबसे बड़ा असर
एच-1बी वीजा का सबसे बड़ा लाभार्थी भारत रहा है। वित्त वर्ष 2023-24 तक 2 लाख से अधिक भारतीयों को यह वीजा मिला। 2020 से 2023 तक जारी एच-1बी वीजा में 73.7% भारतीय पेशेवर शामिल रहे। टेक कंपनियों जैसे अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, मेटा, एपल और भारतीय आईटी कंपनियों—इन्फोसिस, टीसीएस, विप्रो, टेक महिंद्रा—के कर्मचारियों को अमेरिका में नौकरी के लिए एच-1बी वीजा मिला। नए नियमों के बाद कंपनियों को हर विदेशी कर्मचारी पर बड़ी रकम खर्च करनी होगी। इसके कारण जूनियर और मिड-लेवल भारतीय आईटी पेशेवरों की अमेरिका में नौकरियों पर असर पड़ सकता है। कंपनियां अब अमेरिकी कर्मचारियों को प्राथमिकता दे सकती हैं और कम वेतन वाली नौकरियों के लिए वीजा मुश्किल होगा।
विशेषज्ञों की राय
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अमिताभ कांत, नीति आयोग के पूर्व सीईओ: अमेरिका का यह कदम भारतीय प्रतिभा के लिए अवसर पैदा करेगा। अब भारत में डॉक्टरों, इंजीनियरों और वैज्ञानिकों का फायदा मिलेगा।
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मोहनदास पई, इन्फोसिस के पूर्व अधिकारी: नए आवेदकों पर असर पड़ेगा, लेकिन पहले से वीजा प्राप्त पेशेवरों पर ज्यादा असर नहीं होगा।
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कुणाल बहल, स्नैपडील सह-संस्थापक: कुछ उच्च कौशल वाले पेशेवर भारत लौट सकते हैं, जिससे भारत का प्रतिभा घनत्व बढ़ेगा।
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नैसकॉम: यह कदम भारतीय आईटी कंपनियों की प्रतिस्पर्धा क्षमता को प्रभावित करेगा, लेकिन कंपनियां पहले से ही स्थानीय भर्तियों को बढ़ावा दे रही हैं।
एच-1बी वीजा की फीस बढ़ाने का फैसला अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा और विदेशी वर्कर्स के दुरुपयोग को रोकने के लिए किया गया है। वहीं, भारतीय पेशेवरों और आईटी कंपनियों के लिए यह चुनौती और अवसर दोनों लेकर आया है।