हाथरस 15 जून । जनपद हाथरस में फादर्स डे के अवसर पर कवियों ने अपने शब्दों के माध्यम से पिता के प्रेम, त्याग और महानता को भावभीनी श्रद्धांजलि दी। कार्यक्रम का आयोजन आशु कवि अनिल बौहरे के कुशल संचालन में ऑनलाइन माध्यम से किया गया, जिसमें जिले के प्रतिष्ठित कवियों व कवयित्रियों ने भाग लिया और “पिता सम्मान काव्य प्रस्तुति” के माध्यम से अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं। कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती वंदना के साथ हुई, जिसके पश्चात संचालक अनिल बौहरे ने कहा कि
“पिता ही है, बेटे का स्थाई पता,
पल में माफ करे, बेटे की खता।”
कवयित्रियों की भावपूर्ण प्रस्तुति
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उन्नति भारद्वाज (सिकंदराराऊ):
“अपने पिता को आज मैं नव विहान दूं,
तोहफे में दूं गुल या महकता जहान दूं।” -
डा. सुनीता उपाध्याय:
“पिता रोटी, कपड़ा, मकान, आसमान है,
पिता के आशीष से समाज में सम्मान है।” -
सोनाली वार्ष्णेय:
“तपती धूप में, शीतल फव्वारा बने,
बच्चों के लिए सर्वस्व करता, पिता है जनाब।” -
रूपम कुशवाहा:
“हर दुख में मेरे साथ रहे खड़े,
पिता मुझे जिताने आगे बढ़े।” -
करिश्मा शर्मा:
“मेरे सपनों की उड़ान का अस्मां है पापा,
दुआ मांगती, सुरक्षित रहें, आसमानी पापा।” -
योगिता वार्ष्णेय:
“मां की डांट ने जब भी मुझको रुलाया है,
पापा के प्यार ने तभी मुझको हंसाया है।” -
करीना चौधरी:
“बड़े लाड़ से उन्हीं पिता ने झुलाया हमें पालने में,
खून-पसीना बहाकर बढ़ाया हमें संभालने में।”
वरिष्ठ कवियों की प्रस्तुतियाँ
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जय प्रकाश पचौरी (सादाबाद):
“पूज्य पिता की आज्ञा मानना है कर्तव्य हमारा,
वृद्धावस्था में सेवा करे जो, बेटा सबसे प्यारा।” -
ग़ाफ़िल स्वामी:
“खुशी लुटाते सुत पर, सहते कष्ट तमाम,
फादर्स डे पर अनन्त प्रणाम, पिता के नाम।” -
चेतन उपाध्याय (जिलाध्यक्ष, संस्कार भारती):
“खून पसीना खाद मिला, दिया अनुपम जीवन,
ईश्वर रूपी पिता आपको इन सांसों का अर्पण।” -
प्रभू दयाल दीक्षित ‘प्रभू’:
“पिता सभी की मूल है, बच्चे हैं फल-फूल,
परम पिता सबके प्रभु, हम चरणों की धूल।” -
सुखप्रीत सिंह ‘सुखी’:
“टूटी चप्पल खुद पहन, हमको जूते दिलवाता है,
पाने का नाम पापा, जिसमें दो बार ‘पा’ आता है।” -
डॉ. जितेन्द्र शर्मा (सचिव, काका स्मारक):
“खुद अभाव सह, बेटे को देता धूप है,
पिता ईश्वर का, पुत्र को ऐसा रूप है।” -
अजय गौड़:
“पापा, आपा, थापा—हम कर्ज़दार आपके,
भूखा रह बेटे को खिलाया, ऋणी बाप के।” -
पंडित हाथरसी:
“पिता हमारे भगवान हैं,
सच, घर की वो शान हैं।” -
गोपाल चतुर्वेदी (जनश्रुति):
“इतनी मिलती है मेरी सूरत मेरे बाप से,
लोग मुझको मेरा ही बाप समझ लेते हैं।” -
सेठ सुनील बर्मन:
“हर कदम पर साया बनकर चलते हैं पिता,
मुसीबतों में दीवार बनकर ढलते हैं पिता।” -
प्रगल्भ लवानिया:
“पिता धर्मः, पिता स्वर्गः, पिता हि परम तपः।” -
डॉ. भरत यादव (जिलाध्यक्ष, राष्ट्रीय कवि संगम):
“हां जी बाबूजी, जी बाबूजी,
सबसे बढ़कर हैं पिताजी।”
कार्यक्रम के अंत में बृज कला केंद्र अध्यक्ष चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने आभार व्यक्त करते हुए कहा :
“मैंने खुद देखे नहीं हैं विधाता,
ऐसे ही होंगे जैसे होते पिता।”
भावपूर्ण प्रस्तुति, सार्थक उद्देश्य
पिता दिवस पर आयोजित यह कार्यक्रम भावनाओं, काव्य और संस्कृति का अनुपम संगम रहा, जिसने श्रोताओं के हृदय को छू लिया। यह आयोजन जनपद के साहित्यिक क्षेत्र की सशक्त उपस्थिति का प्रमाण भी बना।