Hamara Hathras

15/09/2024 9:38 pm

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नई दिल्‍ली 08 सितंबर । पंजाब के एक किसान ने रेलवे से मुआवजे के केस में अदालत का सहारा लिया। देखते ही देखते वह पूरी ट्रेन के मालिक बन गए। यह कुछ ऐसा था जो अब तक कोई नहीं कर सका। यहां तक मुकेश अंबानी, गौतम अडानी और रतन टाटा जैसे द‍िग्‍गज उद्योगप‍त‍ि भी कभी ट्रेन के माल‍िक नहीं बन पाए। मामला 2007 का है। तब लुधियाना-चंडीगढ़ रेलवे लाइन के लिए रेलवे ने जमीन का अधिग्रहण किया था। इस प्रक्रिया में कटाना गांव में सम्पूर्ण सिंह की जमीन भी शामिल थी। रेलवे ने उन्हें शुरुआत में 25 लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा दिया। लेकिन, सिंह को बाद में पता चला कि पड़ोस के गांव में रेलवे ने 71 लाख रुपये प्रति एकड़ की दर से जमीन खरीदी थी। अपने साथ हुए भेदभाव से नाराज होकर सिंह ने अदालत का दरवाजा खटखटाया।

सम्‍पूर्ण स‍िंंह के पक्ष में आया फैसला

मामला 2015 में अदालत पहुंचा जहां फैसला सिंह के पक्ष में आया। अदालत ने रेलवे को आदेश दिया कि वह सिंह को 1.47 करोड़ रुपये का मुआवजा दे। हालांकि, रेलवे ने केवल 42 लाख रुपये का भुगतान किया। भुगतान में कमी और पूरी राशि चुकाने में रेलवे की लगातार विफलता से निराश होकर सिंह ने अपनी कानूनी लड़ाई को एक अनोखा मोड़ दिया। साल 2017 में जिला एवं सत्र न्यायाधीश जसपाल वर्मा ने एक असाधारण कानूनी कार्रवाई करते हुए बकाया मुआवजा वसूलने के लिए दिल्ली-अमृतसर स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन और लुधियाना स्टेशन मास्टर के कार्यालय को जब्त करने का आदेश दे दिया। अदालत का आदेश मिलते ही सिंह लुधियाना स्टेशन पहुंचे और ट्रेन को अपने कब्जे में ले लिया।

ट्रेन के एकमात्र माल‍िक बने

कुछ समय के लिए सिंह एक यात्री ट्रेन के एकमात्र मालिक बन गए। ट्रेन के इस अप्रत्याशित स्वामित्व ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं। सम्‍पूर्ण सिंह भारत में एकमात्र ऐसे व्यक्ति बन गए जिन्होंने यह अनोखा खिताब हासिल किया। अंबानी, अडानी, टाटा और ब‍िड़ला जैसे उद्योग समूहों के पास भी यह खि‍ताब नहीं है। हालांकि, यह सिलसिला ज्यादा समय तक नहीं चला। ट्रेन को जल्द ही छुड़वा लिया गया। यह मामला अभी भी कानूनी दांवपेंच में फंसा हुआ है। अस्थायी स्वामित्व के बावजूद सम्पूर्ण सिंह की कहानी इस बात का सबूत है कि कैसे आम नागरिक कानून की ताकत से सबसे बड़ी संस्थाओं को भी हिला सकता है।

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