हाथरस 07 अगस्त । वर्तमान समय की अनियमित जीवनशैली और बिगड़ते खानपान के कारण फैटी लीवर रोग तेजी से आम होता जा रहा है। यह रोग शुरुआत में लक्षणहीन रहता है, लेकिन समय रहते इलाज न हो तो यह सिरोसिस और लिवर फेलियर जैसे गंभीर रोगों में बदल सकता है। यह जानकारी देते हुए वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. यू.एस. गौड़ ने बताया कि फैटी लीवर रोग दो प्रकार का होता है अल्कोहलिक फैटी लीवर (शराब के सेवन से) और नॉन-अल्कोहलिक फैटी लीवर (अनुचित खानपान और जीवनशैली से)।
मुख्य कारण
अत्यधिक वसा और जंक फूड का सेवन, मोटापा व पेट की चर्बी, मधुमेह और उच्च कोलेस्ट्रॉल, शारीरिक श्रम की कमी, तनाव, अनियमित दिनचर्या और नींद की कमी
संभावित लक्षण
लगातार थकान और कमजोरी, पेट के दाईं ओर भारीपन या हल्का दर्द, पाचन संबंधी गड़बड़ी, भूख कम लगना, शरीर का वजन तेजी से बढ़ना। डॉ गौड़ ने बताया कि इसकी पुष्टि के लिए अल्ट्रासाउंड, लिवर फंक्शन टेस्ट, या फाइब्रोस्कैन कराना आवश्यक होता है।
उपचार और निवारण
संतुलित आहार अपनाएँ, जंक फूड और तैलीय भोजन से बचें, नियमित व्यायाम, योग या वॉक को दिनचर्या में शामिल करें। धूम्रपान व शराब का त्याग करें। मानसिक तनाव कम करें, ध्यान व प्राणायाम करें। फल, हरी सब्जियां और प्रोटीन युक्त आहार लें।
होम्योपैथिक दृष्टिकोण से उपचार संभव
डॉ. यू.एस. गौड़ के अनुसार, होम्योपैथिक पद्धति से फैटी लीवर का प्रभावी उपचार संभव है। लक्षणों के अनुसार चेलीडोनियम, लाइकोपोडियम, कार्डुआस, कालमेघ आदि औषधियाँ चिकित्सकीय सलाह पर दी जाती हैं, जो लीवर को स्वस्थ करने में सहायक होती हैं। उन्होंने लोगों से अपील की कि फैटी लीवर को हल्के में न लें और समय रहते चिकित्सकीय सलाह लें।