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सासनी 02 जुलाई । स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत केंद्र और राज्य सरकारों ने खुले में शौच से मुक्ति और महिलाओं के सम्मान की रक्षा के उद्देश्य से शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय निर्माण पर करोड़ों रुपये खर्च किए। इन शौचालयों को सम्मानजनक रूप से ‘इज्जत घर’ का नाम दिया गया, ताकि महिलाओं को सुरक्षा और सुविधा दोनों मिल सके। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश लोग आज भी खुले में शौच जाते दिखाई देते हैं। शौचालय निर्माण के बावजूद उपयोग की कमी और जनजागरूकता का अभाव मिशन की सफलता पर प्रश्नचिन्ह खड़े करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में बने कई शौचालयों की स्थिति जीर्ण-शीर्ण है। कई ‘इज्जत घर’ उपलों, लकड़ियों या कंडों के भंडारण के लिए उपयोग किए जा रहे हैं, जिससे साफ होता है कि ये शौचालय सिर्फ कागज़ों पर उपयोग में लाए जा रहे हैं। महिलाओं के सम्मान की रक्षा के जिस उद्देश्य से ये शौचालय बनाए गए थे, वह तभी पूर्ण हो सकता है जब ग्रामीण समाज स्वच्छता को केवल सरकारी योजना नहीं, बल्कि अपनी जिम्मेदारी माने। स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि जब तक शौचालय उपयोग को संस्कार और स्वभाव में नहीं लाया जाएगा, तब तक ‘स्वच्छता’ केवल नारों तक सीमित रह जाएगी।

 

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