हाथरस 15 अक्टूबर । जिले के एहन गाँव में जन्मे वैदिक वैज्ञानिक आचार्य अग्निव्रत ने वेदों को समझाने के लिए महान् ऋषियों द्वारा लिखे गए ग्रन्थों में से एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ निरुक्त का वैज्ञानिक भाष्य किया है। इस ग्रन्थ को महाभारत कालीन माना जाता है। इस ग्रन्थ का समय-समय पर अनेक विद्वानों ने अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार भाष्य किया, पर निरुक्त का ऐसा वैज्ञानिक भाष्य हमारे सामने पहली बार आया है। इस ग्रन्थ में लगभग 700 मन्त्र उद्धृत हुए हैं, जिनका आपने वैज्ञानिक भाष्य तो किया ही है, अनेक विवादित वा कठिन मन्त्रों का तीन प्रकार का भाष्य किया है। यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण और विशिष्ट कार्य है। इसके लेखक आचार्य अग्निव्रत ने अपने जीवन के बहुमूल्य लगभग 4-5 वर्ष इसके लिए समर्पित किए हैं। यह जानकारी वैदिक एवं आधुनिक भौतिकी शोध संस्थान, भीनमाल के प्राचार्य विशाल आर्य ने दी। लेखक के अनुसार इस ग्रन्थ में तारों की संरचना एवं उनमें होने वाली विभिन्न क्रियाओं के ऐसे विज्ञान का वर्णन किया गया है, जिसके बारे में विश्व के वैज्ञानिकों को जानकारी नहीं है। वैदिक पदों के वैज्ञानिक रहस्यों के उद्घाटन में यह ग्रन्थ मील का पत्थर साबित होगा। इन रहस्यों को जानकर वेदों के महान् विज्ञान को जानने में विशेष सफलता मिलेगी। इस वेदार्थ-विज्ञानम् ग्रन्थ में सृष्टि विज्ञान की अनेक अनसुलझी समस्याओं का समाधान किया गया है, जिससे वैज्ञानिक जगत् विशेषकर भारत के वैज्ञानिकों को विशेष लाभ मिलेगा। प्रधानमन्त्री ने ISRO के वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए पूरे देश की युवा पीढ़ी का आह्वान किया था कि वेदों में से विज्ञान के रहस्यों को खोजने का प्रयास करना चाहिए। उन वैज्ञानिकों को इस ग्रन्थ का उपयोग भारत को वैज्ञानिक क्षेत्र में आगे ले जाने के लिए करना चाहिए, जिससे भारत फिर से जगत् गुरु का पद प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ सके।
वेदार्थ-विज्ञानम् ग्रन्थ विमोचन भारत के महामहिम उपराष्ट्रपति ने कल 14 अक्टूबर को उपराष्ट्रपति भवन में किया। इस अवसर पर महामहिम ने कहा कि यह ज्ञान कितना आवश्यक है, यह ज्ञान कितना महत्वपूर्ण है और भारत जो आबादी में दुनिया का एक छठा है, ज्ञान में कहीं ज्यादा है। हमारी सांस्कृतिक विरासत, हमारी संस्कृति का ज्ञान, हमें दुनिया में अभूतपूर्व स्थान देता है और अच्छा विषय यह है कि वर्तमान में दुनिया भारत की पहचान को पहचानने लगी है।
इन ग्रन्थों से क्या सिद्ध होता है? एक कि वेद ब्रह्माण्डीय ग्रन्थ है। हमारे वैदिक भाषा, ब्रह्माण्ड की भाषा है। वेद मन्त्र परमात्मा द्वारा इस ब्रह्माण्ड में हो रहा वैज्ञानिक संगीत है। यह इस पुस्तक में लिखा है। यह मेरे विचार नहीं है, मैं तो सहमति व्यक्त करके बता रहा हूँ। जो रहस्य आज हम देख रहे हैं और दुनिया के वैज्ञानिक जो उनका अध्ययन कर रहे हैं, अक्सर देखा गया है कि उनकी प्रचुर मात्रा में जानकारी हमारे यहाँ वेदों में है। रहस्यों पर पर्दा उठाना है, तो यह भी देखना पड़ेगा कि जानकारी तो है, पर हम किस स्तर पर थे, उस समय की जानकारी उपलब्ध की गई, किन हालात में की गई और ऐसी स्थिति में, वेदार्थ-विज्ञानम् नाम ही काफी है। अन्त में महामहिम कहते हैं कि मैं इस ग्रन्थ के लेखक एवं प्राचीन वैदिक ग्रन्थों के वैज्ञानिक भाष्यकार श्री आचार्य अग्निव्रत के इस प्रयास के लिए, आपको बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति की धर्मपत्नी सुदेश धनखड, डॉ सत्यपाल सिंह, पूर्व मन्त्री, भारत सरकार, ग्रन्थ के लेखक आचार्य अग्निव्रत, सम्पादक डॉ मधुलिका आर्या व विशाल आर्य, आर्य समाज के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष सुरेश चंद्र आर्य, राजस्थान पूर्व के पूर्व लोकायुक्त जस्टिस सज्जन सिंह कोठारी, डी.आर.डी.ओ. के पूर्व निदेशक डॉ रामगोपाल, पूर्व आईएएस, आईपीएस, आईआरएस अधिकारी डीडीए की डायरेक्टर डॉ अल्का आर्या, अनेक वैज्ञानिक, प्रबुद्ध जन के साथ-साथ संदीप सिंह महामंत्री भारतीय जनता किसान मोर्चा हाथरस उपस्थित थे।