हाथरस 08 अक्टूबर । शरद पूर्णिमा का पर्व हिन्दुओं के लिए केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि इसका महत्व स्वास्थ्य, समृद्धि और सामाजिक समरसता से भी जुड़ा हुआ है। यह पर्व हमें प्रकृति की दिव्यता, चंद्र देव के आशीर्वाद और मां लक्ष्मी की कृपा का अनुभव कराता है। शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है और उसकी किरणों से अमृत वर्षा होती है। मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय इसी दिन देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, इसलिए इसे लक्ष्मी प्रकटोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला संघ चालक डॉ. यूएस गौड़ ने कहा कि भक्तों का विश्वास है कि जो लोग पूर्णिमा की रात जागरण कर माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं, उनके घर में स्थायी रूप से लक्ष्मी निवास करती हैं और उन्हें धन, सौभाग्य और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। इसके साथ ही, भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास लीला का आरंभ भी इसी रात किया था, जिससे इसे रास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों में विशेष औषधीय गुण होते हैं, जो शारीरिक रोगों को दूर करने और मन को शांति देने में सहायक माने जाते हैं।
इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। सफेद वस्त्र, चावल, शक्कर या दूध जैसी चंद्रमा से संबंधित वस्तुएं दान करने से कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है और जीवन में मानसिक शांति आती है। सामाजिक दृष्टि से संघ इस पर्व को सामाजिक समरसता के रूप में मनाता है। इस अवसर पर शाखाओं पर खेल, भजन-कीर्तन और साधना के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। सभी स्वयंसेवक जाति-पाती से मुक्त होकर एक दूसरे के साथ हंसी-ठिठोली करते हैं और खीर का प्रसाद खाते एवं खिलाते हैं। इस प्रकार शरद पूर्णिमा न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा का पर्व है, बल्कि सामाजिक सौहार्द, स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक भी है।