
सिकंदराराऊ (हसायन) 06 अक्टूबर । कस्बा व ग्रामीण अंचल में अश्विनी मास के शुक्ल पक्ष की चर्तुदशी तिथि सोमवार को छोटे-छोटे बच्चे टेसू झांझी लेकर घर-घर दान मांगते दिखाई दिए। दशहरे के बाद बच्चों ने घर-घर जाकर टेसू झांझी के गीत गाते हुए लोगों से दान लिया। नन्हे मुन्ने बच्चों की तोतली जुबान और ब्रज भाषा में गाए गए मधुर गीत आज भी लोगों के मन को भा रहे हैं। वैदिक सनातन धर्म और प्राचीन पौराणिक कथाओं के अनुसार टेसू झांझी की परंपरा महाभारत काल से जुड़ी है। इसे भीम के पुत्र बर्बरीक और झांझी (सांझी) की कथा से जोड़ा जाता है। कथा के अनुसार श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनके सिर का बलिदान मांगा और इसी से टेसू सांझी की शादी का प्रचलन शुरू हुआ। बच्चे दशहरे के बाद टेसू और सांझी इकट्ठा कर शरद पूर्णिमा को उनका विवाह धूमधाम से करते हैं और बाद में विसर्जन करते हैं। इस धार्मिक प्रथा के अनुसार टेसू झांझी के विवाह में बाधाओं को डालने से गृहस्थ जीवन में आने वाली कठिनाइयों से बचाव होता है। पहले लोग दान के रूप में अनाज या अन्य वस्तुएं देते थे, लेकिन डिजिटल युग में यह प्रथा धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। हाथरस के ब्रज क्षेत्र में यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है, लेकिन आजकल बच्चों को टेसू झांझी के लिए मिलने वाला दान कम होने से यह प्रथा संकट में है।










