हाथरस 29 सितम्बर । जिला कृषि रक्षा अधिकारी निखिल देव तिवारी ने बताया कि खरीफ फसल धान में इस समय कुछ क्षेत्रों में रोग एवं कीट प्रकोप दिखाई दे रहे हैं। किसानों को इसके नियंत्रण एवं बचाव हेतु आवश्यक सुझाव दिए गए हैं। धान की बालियों में गधी कीट एवं सैनिक कीट देखे जा रहे हैं। गधी कीट दानों का दूध चूसकर चावल बनने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है, जबकि सैनिक कीट की सूंडियां बालियों को काटकर नीचे गिरा देती हैं। इनके नियंत्रण हेतु मैलाथियान 5% धूल 20-25 किलो प्रति हेक्टेयर, फैनवेलरेट 0.04% धूल 20-25 किलो प्रति हेक्टेयर, या एजाडिरेक्टिन नीम आयल 0.15% ईसी 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करने की सलाह दी गई है। इसके अतिरिक्त क्यूनालफास, फिप्रोनिल या एसिटामिप्रिड का प्रयोग भी लाभकारी बताया गया है। धान की फसल में मिथ्या कण्डुआ (फाल्स स्मट) रोग के लक्षण भी पाए गए हैं, जिसमें दाने पीले व बाद में काले रंग के पाउडर में बदल जाते हैं। इसके रोकथाम के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्ल्यूपी 2 किलो, कॉपर हाइड्रोक्साइड 77% डब्ल्यूपी 2 किलो, अथवा एमिस्टार टोप (एजोस्ट्रीोविन + डाइफेनोकोनाजोल) 500 एमएल प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करने की सलाह दी गई है।
धान की फसल में जीवाणु झुलसा व जीवाणुधारी झुलसा रोग भी देखने को मिल रहे हैं, जिसमें पत्तियां किनारों से सूखने लगती हैं और कत्थई धारियां बन जाती हैं। इसके लिए 15 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट (90%) + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड (10%) को 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के साथ मिलाकर 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने की सलाह दी गई है। इसके अलावा धान में झौंका रोग (ब्लास्ट) भी पाया जा रहा है, जिसमें पत्तियों पर आँख जैसी आकृति के धब्बे बनते हैं। इसके नियंत्रण हेतु एडीपोनफास 50% ईसी 500 एमएल, हेक्साकोनाजोल 5% ईसी 1 लीटर, आइसोप्रोथियालिन 40% ईसी 750 एमएल, अथवा केसुगामाइसिन 3% एसएल 1.15 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600-700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने की सलाह दी गई है। जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने किसानों से अपील की है कि समय-समय पर अपनी फसल का निरीक्षण करते रहें और यदि कहीं रोग या कीट का प्रकोप दिखे तो तुरंत सुझाए गए उपायों का पालन करें, ताकि फसल को नुकसान से बचाया जा सके।