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लखनऊ 07 जुलाई । उत्तर प्रदेश में प्राथमिक स्कूलों के विलय के फैसले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ से राज्य सरकार को बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने सोमवार को इस फैसले को चुनौती देने वाली दोनों याचिकाओं को खारिज कर दिया। इससे सरकार के उस कदम को न्यायिक मान्यता मिल गई है, जिसके तहत प्रदेश में बच्चों की संख्या के आधार पर प्राथमिक विद्यालयों का उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में विलय किया जा रहा है। इस मामले में न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सीतापुर जिले के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले 51 बच्चों की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई की। याचियों ने बेसिक शिक्षा विभाग के दिनांक 16 जून 2025 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें विद्यालयों का विलय प्रस्तावित किया गया था।

याचियों की दलील : RTE कानून का उल्लंघन

याचियों की ओर से यह तर्क दिया गया था कि यह निर्णय 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने वाले कानून (RTE Act) का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि स्कूलों के विलय से छोटे बच्चों को दूर स्कूलों में भेजना पड़ेगा, जिससे उनकी पढ़ाई पर नकारात्मक असर पड़ेगा।

सरकार का पक्ष : संसाधनों का समुचित उपयोग

वहीं, राज्य सरकार ने अदालत में अपनी दलीलों में स्पष्ट किया कि यह कदम शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और संसाधनों के बेहतर उपयोग के उद्देश्य से उठाया गया है। सरकार ने कोर्ट को बताया कि प्रदेश में ऐसे 18 प्राथमिक विद्यालय हैं, जहां एक भी छात्र नामांकित नहीं है। ऐसे में इन स्कूलों का पास के विद्यालयों में विलय करके शिक्षकों और संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल सुनिश्चित किया जा सकता है। सरकार ने यह भी कहा कि यह निर्णय बच्चों के हित में और समग्र शिक्षा सुधार नीति का हिस्सा है।

दोनों याचिका खारिज

सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने शुक्रवार को फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे सोमवार दोपहर सुनाया गया। कोर्ट ने माना कि स्कूलों के विलय का फैसला नियोजित, तार्किक और शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने वाला है, जो किसी भी प्रकार से बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता।

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