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हाथरस 29 अप्रैल । देशभक्ति, त्याग और दूरदर्शिता की प्रतिमूर्ति राजा महेन्द्र प्रताप सिंह की पुण्यतिथि पर शहर में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर डाक टिकट संग्रहकर्ता शैलेन्द्र वार्ष्णेय सर्राफ ने राजा महेन्द्र प्रताप को भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग दोहराई। शैलेन्द्र वार्ष्णेय ने कहा कि राजा महेन्द्र प्रताप का सम्पूर्ण जीवन देशभक्ति, मानव एकता और आजादी के संकल्प से ओतप्रोत रहा। उन्हें “माँ भारती की आरती के अविचल अखण्ड दीप” और “आज़ादी के भीष्म पितामह” की उपाधियाँ दी जाती रही हैं, लेकिन सरकार की ओर से उन्हें आज तक भारत रत्न जैसी सर्वोच्च नागरिक उपाधि नहीं मिली, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने बताया कि एक बार केंद्र सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट ज़रूर जारी किया था, लेकिन वह “सूरज को दीया दिखाने” के समान है। उनकी लिखित पुस्तक ‘प्रेमधर्म’ को अब तक किसी शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया गया, जबकि यह आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देने वाली रचना है। वार्ष्णेय ने यह भी मांग की कि राजा महेन्द्र प्रताप की जयंती या पुण्यतिथि पर सरकारी अवकाश घोषित किया जाए। उन्होंने बताया कि राजा साहब ने अपनी सारी सुख-सुविधाएं त्यागकर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया और विदेशों में रहकर आजादी की अलख जगाते रहे। उन्होंने काबुल के बाग-ए-बाबर राजमहल में ‘हिन्द सरकार’ की स्थापना कर भारत की स्वतंत्रता के आंदोलन को वैश्विक पहचान दिलाई।

गौरतलब है कि 29 अप्रैल 1946 को यह महान स्वतंत्रता सेनानी देश की सेवा करते हुए इस नश्वर संसार से विदा हो गए। शैलेन्द्र वार्ष्णेय सर्राफ ने कहा कि राजा महेन्द्र प्रताप को भारत रत्न से सम्मानित किया जाना ही उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी, जिससे देशवासी उनके आदर्शों से प्रेरणा लेकर राष्ट्र सेवा में अपना योगदान दे सकें।

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