मथुरा 05 अप्रैल । डिजिटल युग ने स्वास्थ्य सेवा सहित कई क्षेत्रों में क्रांति ला दी है, इससे दंत चिकित्सा क्षेत्र भी अछूता नहीं है। डिजिटल युग में दंत चिकित्सकों को अपने अभ्यास में उन्नत तकनीकों को प्रभावी ढंग से एकीकृत करने के लिए आवश्यक तकनीकी कौशल विकसित करना चाहिए। तकनीकी कौशल में निपुणता हासिल करने से दंत चिकित्सकों को रोगी की देखभाल में सुधार करने, अभ्यास संचालन को सुव्यवस्थित करने तथा विकसित हो रहे दंत चिकित्सा क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों का लाभ उठाने में मदद मिलती है। यह बातें के.डी. डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल, मथुरा द्वारा आयोजित सीडीई कार्यक्रम में अतिथि वक्ता डॉ. जतिन अग्रवाल, एमडीएस प्रोस्थोडोन्टिक्स डायरेक्टर, स्माइलएक्सएल डेंटल केयर सेंटर, इंदौर (मध्य प्रदेश) ने सभी यूजी, इंटर्न, पीजी छात्र-छात्राओं तथा संकाय सदस्यों के साथ साझा कीं।
डिजिटल दंत चिकित्सा: आवश्यक ज्ञान और कौशल विषय पर अपने अनुभव साझा करते हुए डॉ. जतिन अग्रवाल ने कहा कि आज के युग में प्रत्येक दंत चिकित्सक को कम्प्यूटर-सहायता प्राप्त डिजाइन और कम्प्यूटर-सहायता प्राप्त विनिर्माण (सीएडी/सीएएम) सॉफ्टवेयर को समझना तथा उसका उपयोग करना दंत पुनर्स्थापना को डिजाइन करने और तैयार करने में बहुत महत्वपूर्ण है। यह तकनीक एक ही दिन में मुकुट और अन्य पुनर्स्थापना की अनुमति देती है, जिससे दक्षता और रोगी संतुष्टि में सुधार होता है। उन्होंने कहा कि डेंटल मॉडल, सर्जिकल गाइड और प्रोस्थेटिक्स बनाने के लिए 3डी प्रिंटिंग तकनीक से परिचित होना भी बहुत ज़रूरी है। यह कौशल ज्यादा अनुकूलित और कुशल उपचार विकल्पों की अनुमति देता है। इतना ही नहीं दंत चिकित्सकों को समय-निर्धारण, रोगी रिकॉर्ड, बिलिंग और संचार के लिए डिजिटल प्रैक्टिस प्रबंधन सॉफ्टवेयर का उपयोग करने में भी निपुण होना जरूरी है।
सीडीई कार्यक्रम की दूसरी वक्ता डॉ. रोली अग्रवाल, एमडीएस इन कंजर्वेटिव डेंटिस्ट्री और एंडो को-डायरेक्टर, स्माइलएक्सएल डेंटल केयर सेंटर, इंदौर (मध्य प्रदेश) ने एंडोडॉन्टिकली उपचारित दांत को पुनर्स्थापित करने पर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि एंडोडोंटिक उपचार को रूट कैनाल उपचार भी कहते हैं। यह प्रक्रिया दांत के अंदर के ऊतक (पल्प) को संक्रमण या सूजन होने से बचाने के लिए की जाती है। इसके बाद दांत को पुनर्स्थापित करने के लिए क्राउन या अन्य बहाली की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि एंडोडोंटिक उपचार के बाद दांत कमजोर हो सकता है लिहाजा दांत को सहारा देने और भविष्य में होने वाले नुकसान से बचाने के लिए उसे पुनर्स्थापित करना जरूरी होता है।
आर.के. एज्यूकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर अग्रवाल तथा प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि इससे भावी दंत चिकित्सकों को बदलती चिकित्सा पद्धति की जानकारी मिलती है, जिसका लाभ रोगी को मिलता है। कॉलेज के डीन और प्राचार्य डॉ. मनेश लाहौरी ने डॉ. जतिन अग्रवाल तथा डॉ. रोली अग्रवाल का बहुमूल्य ज्ञान साझा करने के लिए आभार माना। ओरल मेडिसिन एवं रेडियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ. विनय मोहन ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों से छात्रों को दंत चिकित्सा के क्षेत्र में हो रही प्रगति के बारे में जानकारी मिलती है। समापन अवसर पर सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए।