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मथुरा 09 दिसंबर । किसी व्यक्ति या व्यवसाय के पास मौजूद अमूर्त सम्पत्तियों से जुड़े सभी अधिकार जोकि ऐसी सम्पत्तियों को गैरकानूनी उपयोग या शोषण से बचाये जा सकें, बौद्धिक सम्पदा अधिकार कहलाते हैं। ऐसे अधिकार बौद्धिक सम्पदा के रचनाकारों को दिए जाते हैं ताकि उनकी रचनाओं का इस्तेमाल उनकी अनुमति के बिना कोई दूसरा न कर सके। बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का उपयोग किसी निश्चित समय अवधि के लिए निर्दिष्ट सम्पत्ति या वस्तुओं के उपयोग पर धारक के एकाधिकार को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। इन अधिकारों का उल्लंघन दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। यह बातें सोमवार को जीएल बजाज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस, मथुरा के इंस्टीट्यूशन इनोवेशन काउंसिल (आईआईसी) द्वारा बौद्धिक सम्पदा अधिकार (आईपीआर) और नवप्रवर्तकों व उद्यमियों के लिए इसकी महत्ता विषय पर आयोजित कार्यशाला में मुख्य अतिथि बौद्धिक सम्पदा अधिकार विशेषज्ञ पूजा कुमार ने छात्र-छात्राओं को बताईं।

मुख्य अतिथि पूजा कुमार ने छात्र-छात्राओं को बताया कि आईपी को पेटेंट, कॉपीराइट और ट्रेडमार्क द्वारा कानून के दायरे में लाते हुए संरक्षित किया जाता है, जो लोगों को उनके द्वारा आविष्कार, निर्माण से मान्यता या वित्तीय लाभ अर्जित करने में सक्षम बनाता है। नवोन्मेषकों के हितों और व्यापक सार्वजनिक हित के बीच सही संतुलन बनाकर आईपी प्रणाली में ऐसा वातावरण विकसित करना है जिसमें रचनात्मकता और नवाचार पनप सके। उन्होंने कहा कि पेटेंट किसी आविष्कार के लिए दिया गया एक विशेष अधिकार है। आमतौर पर कोई पेटेंट, पेटेंट मालिक को यह तय करने का अधिकार देता है कि आविष्कार का इस्तेमाल दूसरों द्वारा कैसे किया जा सकता है।

पूजा कुमार ने बताया कि कॉपीराइट एक कानूनी शब्द है जिसका उपयोग रचनाकारों को उनके साहित्यिक और कलात्मक कार्यों पर प्राप्त अधिकारों का वर्णन करने के लिए किया जाता है। कॉपीराइट के अंतर्गत आने वाले कार्यों में किताबें, संगीत, पेंटिंग, मूर्तिकला, फिल्में, कम्प्यूटर प्रोग्राम, डेटाबेस, विज्ञापन, नक्शे और तकनीकी चित्र आदि शामिल हैं। उन्होंने कहा कि ट्रेडमार्क एक ऐसा चिह्न है जो एक उद्यम के सामान या सेवाओं को दूसरे उद्यमों से अलग करने में सक्षम बनाता है। ट्रेडमार्क की शुरुआत प्राचीनकाल से ही चलन में है, अतीत में कारीगर अपने उत्पादों पर अपना हस्ताक्षर या चिह्न लगाते थे।

सत्र की शुरुआत मुख्य अतिथि पूजा कुमार के स्वागत से हुई। उन्होंने आईपीआर के विभिन्न पहलुओं जैसे परिभाषा, क्षेत्र, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क, पेटेंट, व्यापारिक रहस्य आदि की विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने आईपीआर के व्यावहारिक उपयोगों को दर्शाते हुए बताया कि नवप्रवर्तक अपने विचारों को कैसे सुरक्षित और व्यावसायिक रूप से उपयोग में ला सकते हैं। प्रस्तुति के बाद प्रतिभागियों और विशेषज्ञ के बीच प्रश्नोत्तर सत्र का आयोजन हुआ, जहां प्रतिभागियों ने अपनी जिज्ञासा शांत की। अंत में आईआईसी के उपाध्यक्ष डॉ. शशि शेखर ने मुख्य अतिथि पूजा कुमार को एक स्मृति चिह्न तो आईआईसी  के संयोजक बृजेश कुमार उमर ने उन्हें एक पौधा भेंटकर आभार माना। सत्र का समापन डॉ. शशि शेखर के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने आईपीआर की महत्ता पर जोर दिया तथा मुख्य अतिथि, आयोजन समिति तथा प्रतिभागियों का उनके सहयोग और सहभागिता के लिए धन्यवाद दिया। डॉ. शशि शेखर ने कहा कि जीएल बजाज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस, मथुरा का आईआईसी ऐसे प्रयासों का नेतृत्व करता है, जोकि छात्र-छात्राओं तथा शिक्षकों को नवाचार की दुनिया में सार्थक योगदान देने के लिए सशक्त बनाते हैं।

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