
हाथरस 28 दिसंबर । गेहूं की फसल में इन दिनों खरपतवारों का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है, जिनमें फैलारिस माइनर (मंडूसी) सबसे अधिक खतरनाक मानी जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे गुल्ली-डंडा, गेहूं का मामा और कनकी के नाम से भी जाना जाता है। यदि समय रहते इसका नियंत्रण न किया जाए, तो यह गेहूं की पैदावार को 10 से 70 प्रतिशत तक नुकसान पहुँचा सकती है। कृषि विज्ञान केंद्र हाथरस के वैज्ञानिक डॉ. बलवीर सिंह ने बताया कि मंडूसी देखने में गेहूं के पौधे के समान होती है, जिससे प्रारंभिक अवस्था में इसकी पहचान करना कठिन हो जाता है। यह खरपतवार खाद, पानी और धूप के लिए गेहूं की फसल से सीधी प्रतिस्पर्धा करती है, जिससे फसल कमजोर हो जाती है। डॉ. सिंह ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में आइसोप्रोट्यूरॉन जैसी पारंपरिक खरपतवारनाशी दवाओं के प्रति मंडूसी में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है, जिसके कारण ये दवाएं अब प्रभावी नहीं रह गई हैं। उन्होंने कहा कि पहली सिंचाई के बाद खरपतवार उगने की संभावना अधिक रहती है, इसलिए इस समय विशेष सतर्कता बरतना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि खरपतवार नियंत्रण की शुरुआत प्रमाणित बीजों के चयन, बीज उपचार, उचित खेत तैयारी, सही बीज दर और उचित गहराई पर बुवाई से होती है। इन उपायों को अपनाने से मंडूसी का प्रकोप काफी हद तक कम किया जा सकता है।
खरपतवारनाशी दवाओं के प्रयोग को लेकर सावधानी बरतने की सलाह देते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि दवाओं को कभी भी खाद या मिट्टी में मिलाकर छिड़काव नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे दवा की प्रभावशीलता घट जाती है और फसल को नुकसान हो सकता है।
उन्होंने बताया कि चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए मेटसल्फ्यूरान (8 ग्राम प्रति एकड़) प्रभावी है, जबकि केवल मंडूसी के नियंत्रण हेतु क्लोडिनाफॉप (160 ग्राम प्रति एकड़) या सल्फोसल्फ्यूरान (13 ग्राम प्रति एकड़) का प्रयोग किया जा सकता है। मिश्रित खेती, विशेष रूप से गेहूं के साथ सरसों या दलहनी फसलों की स्थिति में, खरपतवारनाशी दवाओं के प्रयोग से बचना चाहिए।
डॉ. सिंह ने बताया कि जिन खेतों में मंडूसी सामान्य दवाओं से नियंत्रित नहीं हो रही है, वहाँ बिक्सलोज़ोन 50% + मेट्रिब्यूज़िन 10% डब्ल्यूजी नामक खरपतवारनाशी दवा का 600 ग्राम दवा के साथ 400 मिलीलीटर सेफनर प्रति एकड़ प्रयोग प्रभावी समाधान है। सभी खरपतवारनाशी दवाओं का छिड़काव तभी करें जब खरपतवार 2 से 4 पत्ती की अवस्था में हों। छिड़काव के लिए 200 लीटर पानी प्रति एकड़ और फ्लैट-फैन नोज़ल का उपयोग करें। अंत में डॉ. बलवीर सिंह ने किसानों से अपील की कि यदि दवा के प्रयोग के बाद भी कुछ मंडूसी के पौधे खेत में शेष रह जाएं, तो उन्हें बीज बनने से पहले जड़ सहित उखाड़कर खेत से बाहर निकाल दें, ताकि आने वाले वर्षों में इस खरपतवार का प्रकोप न बढ़ सके।













