Hamara Hathras

Latest News

हाथरस 21 दिसंबर । नकली मुद्रा का चलन कोई नई बात नहीं है, बल्कि यह समस्या राजा-महाराजाओं के दौर से ही चली आ रही है। शहर के सर्राफा व्यवसाई एवं सिक्का संग्रहकर्ता शैलेंद्र वार्ष्णेय सर्राफ बताते हैं कि मुगलकालीन और अंग्रेजी शासन के समय भी नकली सिक्कों का बड़े पैमाने पर प्रचलन था। उनके पास ऐसे कई सिक्के संग्रहित हैं, जो उस दौर में शातिर बदमाशों द्वारा चलाए गए थे और जो नकली मुद्रा के इतिहास की पुष्टि करते हैं। शैलेंद्र वार्ष्णेय के अनुसार करीब 300 से 400 वर्ष पहले जब चांदी दो-तीन आना तोला की होती थी और राजा-महाराजाओं के नाम व चित्र वाले सिक्के एक रुपये के रूप में चलन में थे, तब उसी शक्ल के नकली सिक्के ढालकर बाजार में उतार दिए जाते थे। इसकी जानकारी मिलते ही राजशाही जांच कमेटियां बाजारों में पहुंचती थीं और नुकीली कील से सिक्कों को गोदकर उनकी जांच करती थीं। यदि सिक्का नकली पाया जाता तो उसे जब्त कर लिया जाता था, जबकि असली सिक्के पर जांच कमेटी की विशेष मुहर लगा दी जाती थी, जिससे उसकी प्रामाणिकता साबित हो सके। अंग्रेजी शासन काल में भी गिलेट और रांग जैसे सिक्कों की जालसाजी सामने आई थी। जब ऐसे सिक्के शैलेंद्र वार्ष्णेय के संग्रह में आए, तो उन्होंने म्यूजियम और पुरातत्व विशेषज्ञों से जानकारी प्राप्त की। आज वे असली और नकली दोनों प्रकार के सिक्कों को अपने संग्रह में संजोए हुए हैं और प्रदर्शनी के माध्यम से विशेष रूप से युवा पीढ़ी को मुद्रा जालसाजी के इतिहास से अवगत कराते हैं। शैलेंद्र वार्ष्णेय का कहना है कि बीते एक दशक में सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से नोटों की जालसाजी पर काफी हद तक नियंत्रण पाया गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Posts

You cannot copy content of this page