
हाथरस 19 दिसंबर । जिले में बढ़ते पाले और घने कोहरे के कारण सरसों की फसल पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। अत्यधिक नमी और गिरते तापमान की वजह से सफेद रतुआ, तना गलन, अल्टरनेरिया ब्लाइट और फूलिया/मृदुरोमिल आसिता/डाउनी मिल्ड्यू जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। कृषि विज्ञान केंद्र हाथरस के वैज्ञानिक डॉ. बलवीर सिंह ने किसानों को सतर्क रहने और समय रहते बचाव के उपाय अपनाने की सलाह दी है।
पाले से बचाव के उपाय
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हल्की सिंचाई: खेत में नमी बनाए रखने के लिए हल्की सिंचाई करें, जिससे मिट्टी का तापमान स्थिर रहे और पाले का असर कम हो।
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यूरिया का छिड़काव: 1% यूरिया के घोल का छिड़काव पाले के प्रभाव को कम करता है।
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सल्फर (गंधक) का प्रयोग: सल्फर के छिड़काव से पौधों में आंतरिक गर्मी बढ़ती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार होता है। अत्यधिक ठंड में 1000 लीटर पानी में 1 लीटर गंधक का तेजाब और आधा लीटर ‘डाई मिथाइल सल्फो ऑक्साइड’ मिलाकर छिड़काव करें।
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थायो यूरिया: 500 ग्राम थायो यूरिया को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
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पोटाश और सूक्ष्म पोषक तत्व: इनकी कमी न होने दें, क्योंकि ये पौधों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं।
प्रमुख रोगों का उपचार
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अल्टरनेरिया ब्लाइट और सफेद रतुआ: लक्षण दिखते ही 600 ग्राम मैंकोजेब डाइथेन या इंडोफिल एम-45 को 250-300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। बेहतर परिणाम के लिए 15 दिन के अंतराल पर 3-4 बार करें।
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तना गलन रोग: बार-बार प्रभावित क्षेत्रों में बिजाई के 45-50 दिन और 65-70 दिन बाद कार्बेन्डाजिम 0.1% की दर से दो बार छिड़काव करें।
महत्वपूर्ण सुझाव:
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रसायनों का छिड़काव हमेशा शाम के समय करें, ताकि मधुमक्खियों की सुरक्षा बनी रहे और दवाओं का असर बेहतर हो।
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अधिक जानकारी के लिए किसान कृषि विज्ञान केंद्र, हाथरस से संपर्क कर सकते हैं।












