
सादाबाद (सहपऊ) 06 नवंबर । वतन के लिए मरना, वतन के वास्ते जीना” एक देशभक्ति की भावना को लेकर आजादी के एक महान योद्धा एवं देशभक्त ने अपने जीवन की परवाह न कर करो -मरो के नारे के साथ आजादी का बिगुल फूंका घर-घर, और गाँव गाँव अलख जगाया और नौजवान की फौज एकत्रित कर देश के लिए आजादी का सपना दिखाया और समर्पित भाव से वतन के वास्ते जीने की शपथ ली और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े आजाद जी ने लोगों में देश रक्षा की भावना जाग्रत कर उसके सम्मान के लिए सर्वस्व बलिदान करने की प्रतिबद्धता को दर्शाते हुएं देश के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण करने का संकल्प लिया। वतन के लिए मरना: देश की रक्षा के लिए अंतिम सांस तक लड़ना और ज़रूरत पड़ने पर अपना बलिदान देने समर्पण की भावना: के साथ एक ऐसी प्रतिबद्धता थी जो जीवन और मृत्यु को देश के प्रति समर्पित कर देती है। स्वतंत्रता सेनानियों और सैनिकों के जीवन से इस भावना के कई उदाहरण मिलते हैं, जिन्होंने अपने देश के लिए जीना और मरना चुना। ब्रिटिश हुकूमत में फिरंगियों से लोहा-लेकर देश को आजादी दिलाने वाले सहपऊ के महान देश भक्त सुनहरी लाल आजाद की 22वीं पुण्य तिथि शनिवार 8 नवम्वर को उनके पैतृक निवास आजाद भवन पर दोपहर 11 बजे मनाई जायेगी। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में पूर्व में जिला मथुरा का कस्बा सहपऊ सबसे अग्रणी था उसके महान नायक एवं योद्धा विगुल फूॅकने वाले सुनहरी लाल आजाद थे। एटा जनपद की अवागढ रियासत के जिल्लेदार रिक्की लाल जैसवाल के यहाॅ जन्म लिया और बचपन से ही उनकी रगों में देश प्रेम की भावना जागृत हुई और महात्मा गांधी के द्वारा चलाये गये स्वतंत्रता आंदोलन में 14 वर्ष की अवस्था में कूॅद पडे कस्बे व क्षेत्र के चार दर्जन से अधिक नवयुवकों को लेकर सन् 1942 के भारत छोडो आंदोलन में अंग्रेजो के खिलाफ जंग ठानी। भारत छोडो आंदोलन में भाग लेने के कारण 1942 में आपको भारत रक्षा कानून की धारा 26 के अन्तर्गत दस माह की जेल हुई।
जेल से छूटने के पश्चात् उन्होंने निकटवर्ती जलेसर रोड रेलवे स्टेशन की रेलवे लाइन व संचार व्यवस्था को ठप्प करने के साथ रेलवे खजाने को लुटवा दिया और सरकारी खाद्यान के गोदाम को क्षति पहुॅचायी। इसके चलते ब्रिटिश सेना के जवानों ने पुनः घेरा बन्दी की लेकिन आजाद जी ब्रिटिश सरकार की फौज को चकमा देकर गिरफ्तारी बच निकले लेकिन उनके संगी साथी व भाई जयन्ती प्रसाद जैसवाल, चो0 दिगम्बर सिंह, रामहेत सिंह, रामजीलाल गुप्ता, हरिकिषोर महाषय, घूरेलाल ओझा, भगवती प्रसाद गौतम, भगवती प्रसाद गौतम, लाखन सिंह, गेंदालाल शर्मा, तेजपाल सिंह, किसन सिंह व बाबूलाल शर्मा आदि को गिरफ्तार कर लिया गया। आजाद जी अपने मिशन को ध्यान में रखकर आगे बढते ही रहे सन् 1945 में प0 जवाहर लाल नेहरू ने सहपऊ के हनुमान टीला पर आजादी की जंग कोे लेकर बैठक की जिसका संचालन सेठ रामस्वरूप गुप्ता ने किया और सुनहरी लाल आजाद को संबोधन के लिये आमंत्रित किया प0 नेहरू के समक्ष देश भक्ति कि भावना को लेकर जो सम्बोधन छोटे से कद के आजाद जी ने जज्वा दिखाया उसे सुनकर प0 जवाहर लाल नेहरू ने आजाद की पीठ थपथपाई और आजाद की उपाधी दी। तभी से लोग उन्हें आजाद जी के नाम से पुकारते थे। वतन के लिए मरना वतन के वास्ते जीने का जज्बा देख कर राष्ट्रभक्त आजाद जी स्वतंत्रता दिवस के 25 वें वर्ष में पूर्व प्रधानमंत्री स्व.इन्दिरा गाॅधी ने लाल किले पर स्मरणीय योगदान के लिये। तामपत्र भेट कर सम्मानित किया। 8 नवम्वर 2003 को आजाद जी अंतिम साॅस के साथ हमेशा के लिये देश से आजाद हो गये। जिनकी 22 वीं पुण्य तिथि पर हम उन्हें शत्-शत् नमन करते है।










