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सिकंदराराऊ (हसायन) 28 अक्टूबर । कस्बा और क्षेत्र में सिंघाड़े की फसल पूरे सबाव पर चल रही है।जिसमें अच्छी बरसात होने के कारण उत्पादकों को भारी लाभ मिल रहा है।हसायन क्षेत्र की सिंघाड़े की खपत उत्तर प्रदेश के जनपदों के अलावा प्रदेश की अन्य प्रदेश की मंडियों में भी हसायन के सिंघाड़े की धमक चल रही है। इसे लेकर मेहनतकश किसानों द्वारा भारी लाभ अर्जित किया जा रहा है। जिसमें सैकड़ो परिवारों का भरण पोषण चल रहा है। इस कार्य में दर्जनों महिला पुरुष और युवा मेहनत मजदूरी करके खूब लाभ ले रहे हैं।हसायन कस्बा और क्षेत्र में सिंघाड़े की फसल पूरी शबाब पर चल रही है। इसमें क्षेत्र के सैकड़ो लोग लाभ उठा रहे हैं।साथ ही मजदूरी के लिए अच्छी कमाई करते हुए मजदूर भी में महिला और पुरुष लगे हुए हैं। इस बार बरसात अच्छी होने के कारण पानीफल सिघाडें की फसल का औसत बहुत अच्छा निकल रहा है।इस सिंघाड़े पानीफल की लागत में करीब चार हजार रुपए प्रति बीघा पर आता है। मगर अच्छी फसल होने के कारण इसमें उत्पादकों को चौदह सौ रूपए प्रति कुंतल तक भाव रहने से भारी लाभ इस बार मिल रहा है। एक बीघा में इसमें करीब चार बार सिंघाड़े की खुदाई की जाती है।  इस समय की फसल की खपत अपने जनपद हाथरस के अलावा आगरा मथुरा एटा कासगंज बुलंदशहर के साथ जयपुर के साथ राजस्थान के कई अन्य जनपदों में इसकी खपत हो रही है। इसकी खपत दिल्ली में भी अच्छे व्यापारी आकर यहां से बड़े वाहनों के माध्यम से सिंगाड़े का की खरीद कर ले जाते हैं। इसके लिए दिल्ली के साथ राजस्थान के भारी तादाद में व्यापारी खरीद करते है।इस फसल के प्रमुख उत्पादक का कहना है। कि यह हमारी काफी पुरानी खेती है। इसमें हमने अनेकों वर्षों से कार्य करते हुए अपने अनुभव के अनुसार अच्छी आय की है। और इसका भरपूर हमें लाभ मिल रहा है।सिंघाड़े की फसल का कार्य हमारी कई पीढियां से चल रहा है। हमारे परदादा भी इस खेती को करते थे। जिन्हें राजा अवागढ़ की रियासत के समय हसायन के तालाब की देखभाल के लिए। रखा जाता था।जिन्हें सैकड़ो बीघा तालाब का पट्टा राजा द्वारा किया गया था।जो अभी तक हम सभी बड़ा परिवार होने के बावजूद भी रोजी-रोटी बना हुआ है।सिंघाड़े की फसल में हमें खूब लाभ अर्जित होता रहा है।सिंघाड़े की फसल हमारी एक प्रमुख फसलों में गिनी जाती है। जिससे हमारे सभी कार्य ऐसी फसल के ऊपर निर्भर रहते हैं।इस बार  अच्छी फसल आने के कारण अच्छी कमाई हो रही है। किसानों का कहना है कि हम इस सिंघाडें की फसल से काफी समय से कर रहे हैं। मगर नई दवाओं की तो बाजार में मिल जाती है। मगर शासन द्वारा इस खेती के लिए कोई भी नई पद्धति के अनुसार हमें और अच्छी किस्म के सिंघाड़े पैदा करने के लिए कोई भी प्रशिक्षण नहीं दिया जाता।जिससे हम अपने क्षेत्र और प्रदेश में इसकी अलग पहचान बना सके।

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