हाथरस 23 अक्टूबर । केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (CPRI) ने आलू की पुरानी प्रजातियों 3797 और चिप्सोना को नई प्रजातियों से बदलने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके विकल्प के रूप में कुफरी रतन, कुफरी तेजस, कुफरी चिपभारत-1 और कुफरी चिपभारत-2 प्रजातियों की बुवाई सादाबाद में शुरू कराई गई है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि लगातार एक ही प्रजाति की लंबे समय तक बुवाई होने से गुणवत्ता और पैदावार प्रभावित होती है। इसी कारण केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र शिमला में विकसित नई प्रजातियों की बुवाई के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। डॉ. आलोक, वैज्ञानिक, ने बताया कि ये चारों प्रजातियाँ सादाबाद की जलवायु के अनुकूल हैं और अधिक उपज देने वाली हैं। इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता और भंडारण क्षमता भी बेहतर है, जिससे फसल की उत्पादकता और कृषि आय बढ़ेगी।
चारों प्रजातियों की विशेषताएँ इस प्रकार हैं
- कुफरी रतन – लगभग 90 दिनों में तैयार, प्रति हेक्टेयर 37-39 टन उपज।
- कुफरी तेजस – गर्मी सहनशील और जल्दी पकने वाली, लगभग 90 दिनों में तैयार, प्रति हेक्टेयर 40 टन तक उपज, कम सिंचाई की जरूरत।
- कुफरी चिपभारत-1 – चिप्स बनाने के लिए उपयुक्त, लगभग 100 दिनों में परिपक्व, उच्च पैदावार।
- कुफरी चिपभारत-2 – जल्दी पकने वाली, लगभग 90 दिनों में तैयार, प्रति हेक्टेयर 35-37 टन उपज।
इस बार नई किस्म कुफरी चिपभारत-1 की बुवाई की गई है, जो चिप्स कंपनियों में भी मांग में है। सादाबाद के छह किसानों और सहपऊ के एक किसान को प्रत्येक को 10-10 कट्टे बीज दिए गए हैं, जिन्हें वे अगले साल अन्य किसानों को उपलब्ध कराएंगे। निदेशक CPRI डॉ. ब्रजेश सिंह ने बताया कि वैज्ञानिकों की ये उपलब्धि आलू क्षेत्र को नई दिशा देगी। अब तक आलू की 80 किस्में विकसित की जा चुकी हैं। कुफरी चिपभारत-1 और कुफरी चिपभारत-2 बीज सादाबाद क्षेत्र के किसानों को दिए गए हैं, और ये किस्में किसानों को लाभान्वित करेंगी।