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हाथरस 18 अक्टूबर । शहर के सर्राफा व्यवसायी शैलेन्द्र वार्ष्णेय अपने अनोखे शौक के लिए चर्चा में हैं। बचपन से ही उन्हें डाक विभाग से जुड़ी वस्तुएँ डाक टिकट, लिफाफा, टेलीग्राम, स्टाम्प पेपर आदि संग्रहित करने का शौक रहा है। आज उनके संग्रह में विश्वभर की दो लाख से अधिक डाक टिकट और लिफाफे शामिल हैं। शैलेन्द्र वार्ष्णेय ने बताया कि उनके पास भारत सरकार द्वारा जारी 95 प्रतिशत डाक टिकट और लिफाफे मौजूद हैं। इनके अलावा, उनके संग्रह में देश-विदेश के महान पुरुषों, स्वतंत्रता सेनानियों, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों, जल, थल और वायु सेना, खेल-कूद, विभिन्न योजनाओं, धर्मों, भारतीय धरोहर, संस्कृति और विरासत पर आधारित डाक टिकट व लिफाफे भी शामिल हैं। उनके संग्रह की विशेषता है अंग्रेजी शासन काल की पहली डाक टिकट जिस पर रानी विक्टोरिया का चित्र अंकित है और आजाद भारत की पहली डाक टिकट, जिस पर तिरंगा झंडा और “जय हिंद” लिखा हुआ है। शैलेन्द्र वार्ष्णेय ने बताया कि जब वे छोटे थे, तब उनके चाचा वैज्ञानिक रमेश चन्द वार्ष्णेय अमेरिका से घर को चिठ्ठी भेजते थे। वे उस लिफाफे से रंगीन डाक टिकट निकालकर अपनी कॉपी में लगाते थे, वहीं से उनका यह शौक विकसित हुआ। उन्होंने अब तक दाऊजी मेला, हाथरस सहित अन्य शहरों में कई बार डाक टिकट प्रदर्शनी भी लगाई है और भविष्य में राज्य स्तरीय प्रदर्शनी का मन है। उनका लक्ष्य है कि अपने संग्रह को बढ़ाकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराएं। शैलेन्द्र वार्ष्णेय का कहना है कि ये डाक टिकट और लिफाफे हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं, जो हमें देश की एकता और संस्कृति की याद दिलाते हैं।

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