हाथरस 18 सितंबर । हास्य और ठहाकों के बादशाह, काका हाथरसी, जिन्होंने अपने जीवन में लोगों को हंसाने का जादू बिखेरा, आज भी अपने अनोखे अंदाज और अंतिम इच्छा के कारण याद किए जाते हैं। 18 सितंबर को जन्मे और इसी दिन 1995 में दुनिया को अलविदा कहने वाले काका हाथरसी ने चाहा था कि उनके अंतिम संस्कार पर कोई रोए नहीं, बल्कि ठहाके लगाए जाएँ। और यह सच भी हुआ। काका हाथरसी की अंतिम यात्रा हाथरस की सड़कों पर ऊंट-गाड़ी पर निकाली गई, जिसमें पूरा शहर शामिल हुआ। श्मशान स्थल पर उनके पार्थिव शरीर के साथ-साथ कवियों का मंच भी सजा था, और लोग उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार ठहाके लगा रहे थे। एक हलवाई ने पार्थिव शरीर पर काका की पसंदीदा इमरतियों की माला चढ़ाई। काका हाथरसी केवल हास्य कवि नहीं थे। वे एक बेहतरीन चित्रकार और संगीतकार भी थे। किशोरावस्था में उन्होंने नाटकों में मंचीय अनुभव शुरू किया और अपने मित्र रंगी लाल के सहयोग से चित्रकारी और संगीत में दक्षता हासिल की। उन्होंने संगीत प्रेस की स्थापना की और मथुरा से पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू किया। लोकसभा में पीएम मोदी ने विपक्ष पर व्यंग्य करते हुए काका हाथरसी की कविताएं पढ़ीं, और संसद में ठहाके गूंजे। उनके हास्य साहित्य ने केवल साहित्यिक मंचों पर ही नहीं, बल्कि देश की राजनीति और समाज में भी हंसी का जादू बिखेरा। काका हाथरसी को 1985 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वे देश-विदेश में हिंदी हास्य कविता के ध्रुवतारे बने।
उनके जीवन का मंत्र था –
“भोजन आधा पेट कर, दुगना पानी पीउ, तिगुना श्रम, चौगुन हंसी वर्ष सवा सौ जीउ।”
आज भी हाथरस और काका हाथरसी का नाम अलग-अलग नहीं लिया जा सकता।