हाथरस 06 अगस्त । आज लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता पौलोमी पाविनी शुक्ला द्वारा दायर एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए, भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन सम्मिलित थे — ने एक अत्यंत उदार, संवेदनशील और ऐतिहासिक आदेश पारित किया। न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि वे अनाथ बच्चों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) के अंतर्गत लाएं, और यह सुनिश्चित करें कि ऐसे बच्चों को उनके आसपास के स्कूलों में प्रवेश मिले। यह कार्य संबंधित राज्य सरकारों द्वारा सरकारी आदेश (G.O.) जारी करके किया जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों को इस आदेश का पालन करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है।
न्यायालय ने न केवल इस विषय में मानवीय संवेदनशीलता दिखाई, बल्कि राज्य को ‘अनाथ बच्चों का पालक पिता’ (Parens Patriae) मानते हुए यह स्पष्ट किया कि जब माता-पिता नहीं होते, तो राज्य की नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह बच्चों की देखभाल और शिक्षा सुनिश्चित करे। न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 51 का भी उल्लेख करते हुए कहा कि यह राज्य का कर्तव्य है कि सभी अनाथ बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो। इसके साथ ही, न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य सरकारें यह सर्वेक्षण करें कि कितने अनाथ बच्चे अभी स्कूल से बाहर हैं और उनकी शिक्षा की व्यवस्था की जाए। इस निर्णय से, जब यह पूरी तरह लागू होगा, अनाथ बच्चों को भी उन्हीं सामान्य और प्रतिष्ठित स्कूलों में पढ़ाई करने का अवसर मिलेगा, जैसा कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम की मूल भावना है।
याचिकाकर्ता पौलोमी पाविनी शुक्ला ने इसे सुप्रीम कोर्ट का अत्यंत दयालु, दूरदर्शी और आवश्यक कदम बताया है, जिससे भारत के लाखों-करोड़ों अनाथ बच्चों को शिक्षा का समान अवसर मिलेगा। यूनिसेफ (UNICEF) के अनुसार, भारत में 2 करोड़ से अधिक अनाथ बच्चे हैं। परंतु आज तक, इन बच्चों की कोई सरकारी गिनती नहीं की गई है। इस संदर्भ में, सुश्री शुक्ला ने अदालत के समक्ष यह अत्यंत महत्वपूर्ण मांग भी रखी कि देश में चल रही जनगणना में अनाथ बच्चों की गणना अनिवार्य रूप से की जाए। इस पर, भारत सरकार की ओर से उपस्थित महान्यायवादी (Solicitor General) ने सकारात्मक उत्तर दिया कि अनाथ बच्चों को जनगणना डेटा में शामिल किया जाना चाहिए और कहा कि वे इस संबंध में आवश्यक निर्देश प्राप्त करेंगे।

शुक्ला ने पूरे देश में अनाथ बच्चों की दयनीय स्थिति पर विस्तृत शोध किया है और इस पर आधारित अपनी पुस्तक “Weakest on Earth – Orphans of India” (प्रकाशक: Bloomsbury) लिखी है। उनकी जनहित याचिका के दायर होने के बाद, कई राज्य सरकारों ने अनाथ बच्चों के लिए आरक्षण जैसी योजनाएं लागू की हैं। उनकी इस दिशा में असाधारण और प्रभावशाली कार्य के लिए उन्हें “Forbes 30 Under 30” की प्रतिष्ठित सूची में भी शामिल किया गया है। यह निर्णय न केवल न्याय का एक सशक्त उदाहरण है, बल्कि यह सर्वोच्च न्यायालय की विशालता, करुणा और संवैधानिक दृष्टिकोण को भी दर्शाता है — एक ऐसा ऐतिहासिक दिन जब देश की सबसे कमजोर और अनसुनी आवाज़ को देश की सबसे ऊँची अदालत ने न सिर्फ सुना, बल्कि उन्हें सशक्त करने का मार्ग भी प्रशस्त किया। आपको बता दें कि पौलोमी पाविनी शुक्ला हाथरस निवासी आईएएस प्रशांत शर्मा की पत्नी हैं, वह सामाजिक कार्यों में हमेशा से अग्रणी रहकर अंतिम पायदान पर खड़े लोगों का जीवन सुगम बनाने के लिए प्रयास करती रहती हैं।