हाथरस 18 जुलाई । भारतीय संस्कृति, जीवन के मूल्यों और सामाजिक कर्तव्यों की प्रेरणा देने वाले प्रसंगों की यदि बात की जाए तो श्रीमद्भागवद गीता से श्रेष्ठ कोई ग्रंथ नहीं माना जा सकता। आज की भावी पीढ़ी को संस्कारवान और ज्ञानवान बनाने की दिशा में यदि गीता को शिक्षा पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जा रहा है, तो यह हम सभी के लिए अत्यंत गर्व की बात है। इसी भावना को प्रकट करते हुए प्रसिद्ध डाक टिकट संग्रहकर्ता श्री शैलेन्द्र वार्ष्णेय ‘सर्राफ’ ने बताया कि सन 1978 में जब देश में जनसंघ सरकार सत्ता में थी, तब श्रीमद्भागवद गीता पर एक विशेष डाक टिकट जारी किया गया था, जिसे उन्होंने आज भी अपने संग्रह में संजो कर रखा हुआ है। यह विशेष डाक टिकट 25 पैसे मूल्य का है, जिस पर भगवान श्रीकृष्ण रथ के सारथी के रूप में और अर्जुन को रथ पर विराजमान दर्शाया गया है। टिकट पर गीता का प्रसिद्ध श्लोक –
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” भी अंकित है, जो कर्मयोग का सार है।
श्री वार्ष्णेय ने कहा कि गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक कर्म आधारित जीवनदर्शन है, जो हर उम्र, हर वर्ग और हर समय के लिए प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि यदि शिक्षा व्यवस्था में गीता को स्थान दिया जाए, तो यह नौनिहालों के चरित्र निर्माण और राष्ट्र निर्माण दोनों के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगा। उन्होंने यह भी कहा कि देवभूमि उत्तराखंड जैसे राज्यों में गीता पाठ्यक्रम लागू करना एक सार्थक पहल है और यह अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा बनना चाहिए। श्री शैलेन्द्र सर्राफ ने अंत में अपील की कि गीता जैसे ग्रंथों को देशभर के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भारतीय संस्कृति की जड़ों से जुड़ सकें और जीवन में धार्मिक व नैतिक मूल्यों को आत्मसात कर सकें।