हाथरस 10 जुलाई । मुरसान गेट स्थित श्री राधेश्याम उदासीन आश्रम में आज गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व आध्यात्मिक उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया गया। यह महापर्व भारतीय संस्कृति की उस महान परंपरा का प्रतीक है, जिसमें गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के तुल्य माना गया है। कार्यक्रम में सनातन दर्शन, जीवन के उद्देश्य और गुरु की महत्ता पर गहन चर्चा हुई। वक्ताओं ने कहा कि भारत की आस्तिक और नास्तिक दोनों ही दर्शन परंपराएं जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने और मोक्ष की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन करती हैं। आश्रम में आयोजित संवाद में वक्ताओं ने कहा कि भारत के मनीषियों और दार्शनिकों ने संपूर्ण जगत को ईश्वर से ओतप्रोत माना है। उन्होंने “त्याग के साथ भोग” का जो मार्ग दिखाया है, वही सच्चा सनातन जीवन-दर्शन है। यदि संपूर्ण मानवता इसे आत्मसात कर ले तो संसार से कलह, संघर्ष और दुख समाप्त हो जाएं और शांति व समृद्धि का साम्राज्य स्थापित हो। यह भी कहा गया कि भारतवर्ष ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया, अपितु यह सदैव सताए गए लोगों की शरणस्थली बना रहा। भारतीय समाज के डीएनए में धर्म के मार्ग से अर्थ अर्जन, सुख-संवर्धन और अंततः मोक्ष की प्राप्ति को जीवन का परम उद्देश्य माना गया है। इस पावन अवसर पर गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा प्रकट की गई। श्रद्धालुओं ने इस पर्व को मानवता के कल्याण, आपसी बंधुत्व, निरोगी जीवन, और विश्व शांति की कामना के साथ मनाया।
अंत में सभी को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए यह संदेश दिया गया कि “संपूर्ण मानवता सुखी हो, सभी निरोगी रहें, आपस में प्रेम और भाईचारा बना रहे, और किसी को भी कभी कोई दुख प्राप्त न हो।”