लखनऊ 08 जुलाई । उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग की सदस्य रेनू गौड़ ने विद्यालय एकीकरण नीति पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के हालिया निर्णय का स्वागत किया है। उन्होंने इसे सरकार की दूरदर्शी सोच और शैक्षणिक संसाधनों के प्रभावी उपयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। रेनू गौड़ ने बताया कि सीतापुर के 51 छात्रों द्वारा दायर याचिका को अस्वीकार करते हुए न्यायालय ने इस नीति को विधिसम्मत और सार्थक ठहराया है, जिससे राज्य के करीब 5,000 प्राथमिक एवं जूनियर विद्यालयों के एकीकरण का रास्ता साफ हो गया है। उन्होंने कहा कि ❝जब तक न्यायालय में लंबित वादों का निर्णय नहीं आ जाता, तब तक सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शन, धरना अथवा अनुशासनहीन आचरण उचित नहीं कहा जा सकता।❞
‘नीति का उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता सुधारना है’
रेनू गौड़ ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा नीति को छात्रों के हितों के विरुद्ध बताए जाने के विपरीत, न्यायालय ने इसे शैक्षणिक गुणवत्ता और प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने वाली नीति करार दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की यह पहल नवाचारपूर्ण और दूरगामी परिणाम देने वाली है।
‘प्रदर्शन और अफवाहों से बचें’
उन्होंने आम नागरिकों से अपील करते हुए कहा कि ❝ऐसे कृत्य न केवल शासन-प्रशासन की कार्यवाही में अवरोध उत्पन्न करते हैं, बल्कि सामान्य नागरिकों, विशेषकर महिलाओं, बच्चों एवं वृद्धों को मानसिक क्लेश का भी कारण बनते हैं।❞
संविधान सम्मत मार्ग अपनाएं
रेनू गौड़ ने नागरिकों से संवैधानिक प्रक्रिया पर आस्था बनाए रखने की अपील करते हुए कहा कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ कर्तव्यनिष्ठा और अनुशासन का संतुलन जरूरी है। उन्होंने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि न्यायपालिका ही अंतिम निर्णय का सर्वोच्च स्रोत है, और जब न्यायालय द्वारा किसी नीति को विधिसम्मत घोषित कर दिया गया है, तो उसका सम्मान करना हम सभी का कर्तव्य है।
‘नवाचारों को दें सकारात्मक दृष्टिकोण’
बयान के अंत में उन्होंने जागरूक नागरिकों से अपील की कि वे सरकार की योजनाओं को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें, अफवाहों से दूर रहें और विनम्रता, संवाद और विवेकपूर्ण तरीके से असहमति को व्यक्त करें।