हाथरस 01 जुलाई । डिजिटल युग में सोशल मीडिया अब अभिव्यक्ति का साधन भर नहीं रह गया है, बल्कि यह जीवन के हर आयु वर्ग के लोगों पर गहरा मानसिक, सामाजिक और नैतिक प्रभाव छोड़ रहा है। सोशल मीडिया का अत्यधिक और असंतुलित उपयोग लोगों की सोच, व्यवहार और संबंधों को प्रभावित कर रहा है। लेख में बताया गया है कि छोटे बच्चे से लेकर वरिष्ठ नागरिक तक, हर कोई सोशल मीडिया के जाल में फंसता जा रहा है। घंटेभर तक स्क्रीन पर टिके रहना, नींद में कमी, विचारों में विकृति, आत्मविश्वास की कमी, आत्मकेंद्रित व्यवहार और हिंसक प्रवृत्तियों में वृद्धि जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।
बच्चों में रील्स, गेमिंग और ट्रेंडिंग कंटेंट के प्रति बढ़ता आकर्षण उनके मानसिक विकास को अवरुद्ध कर रहा है। वहीं, युवा वर्ग लाइक, कमेंट और फॉलोअर्स की दौड़ में मानसिक दबाव का शिकार हो रहा है। यह स्थिति एक सामाजिक चिंता का विषय बन गई है। सोशल मीडिया पर बिताए समय को सीमित किया जाए। परिवारों को चाहिए कि वे बच्चों के साथ संवाद बढ़ाएं और उन्हें रचनात्मक गतिविधियों में संलग्न करें। सोशल मीडिया पर दिखने वाली ग्लैमर वाली ज़िंदगी को यथार्थ से अलग मानकर चलें। फेस टू फेस संवाद को प्राथमिकता दें। स्कूलों और शिक्षण संस्थानों को भी डिजिटल अनुशासन का हिस्सा बनाना चाहिए। लेख का सार यही है कि डिजिटल युग में सोशल मीडिया का विवेकपूर्ण उपयोग ही स्वस्थ समाज और संतुलित जीवन की दिशा में पहला कदम है।
आज सोशल मीडिया के दुरुपयोग को कैसे रोकें? यह सबसे बड़ा सवाल है क्योंकि डिजिटल युग में सोशल मीडिया युवा पीढ़ी का एक अहम हिस्सा बन चुका है। यह कहीं सोच और अभिव्यक्ति का माध्यम है, वहीं दूसरी ओर इसका अति प्रयोग और दुरुपयोग लोगों को मानसिक, सामाजिक और नैतिक रूप से प्रभावित कर रहा है। हर स्तर में यह सवाल उठने लगा है कि युवा सोशल मीडिया के जाल में कैसे फंसता जा रहा है, क्योंकि आज सोशल मीडिया इतना दोस्ताना और आकर्षक हो चुका है कि अधिकांश समय में बच्चे और युवा इसका अत्यधिक उपयोग करते हैं और इससे विचार और सोच की आवश्यकता भी खत्म हो रही है।
सोशल मीडिया नेटवर्क पर फेक न्यूज व अफवाहें फैलाना आम हो गया है। इसमें बच्चों व युवाओं के सामने मोबाइलाइज्ड रील्स, हिंसात्मक वीडियो, पोर्न वीडियो, टूलिंग, साइबर बुलिंग, पावर गेमिंग कंटेंट, दूसरों की निंदा शैली व खुद की तुलना प्रमुख कारण बन चुकी हैं। समय रहते डिजिटल तौर से युवा वर्ग को अनुशासित और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। कंपटीशन और फॉलोअर्स के पीछे पागलपन मुकाम पहुंचाने वाली पोस्ट से बचें। स्वस्थ मानसिक विकास करें, सोशल मीडिया पर दिखने वाली जिंदगी से प्रभावित ना हो। रेलगाड़ी की तरह जिंदगी ना बनाएं। इंस्टाग्राम, सकारात्मक और प्रभावशाली बनाएं। यही इरादा करना चाहिए कि अपनी और अपने बच्चों की आदतों में बदलाव करें। आमने-सामने मिलें, खेलें, प्रकृति से जुड़ें। सोशल मीडिया का संयमित उपयोग करें। बच्चों में नैतिकता की प्राथमिकता व सोशल मीडिया एक सकारात्मक उद्देश्य के लिए प्रयोग में लाएं। बच्चों को किताबें दें और किताबों से जोड़ें। युवाओं को कहानियां पढ़ने, शिक्षा और संवाद के लिए प्रेरित करें। किसी भी आदत को छोड़ने के लिए 21 दिन लगते हैं। विवेक और आत्मचिंतन के लिए बच्चों को प्रेरित करें। सिर्फ लाइक का महत्व दें, सीख दें। रियल लाइफ का महत्व दें।