लखनऊ 18 जून । राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने उत्तर प्रदेश में बिजली कंपनियों के निजीकरण के मसौदे को घोटाला करार देते हुए नियामक आयोग में लोक महत्व प्रस्ताव दाखिल किया है। उन्होंने इस पूरे मामले की नए सिरे से जांच कराने की मांग की है। वर्मा के अनुसार, दक्षिणांचल और पूर्वांचल के 42 जिलों में निजीकरण की तैयारी की जा रही है, जिसका मसौदा विद्युत नियामक आयोग को सलाह के लिए भेजा गया है। लेकिन परिषद ने आरोप लगाया है कि इस प्रक्रिया में शामिल सलाहकार कंपनी ग्रांट थॉर्नटन की नियुक्ति असंवैधानिक और भूमिका संदिग्ध है। पूरे निजीकरण मसौदे को सार्वजनिक किया जाए। मसौदे में जिस तरह से बकाया वसूली (65909 करोड़) में से 30 से 40 फीसदी वसूली को बाध्यकारी बताया गया है, वह पूरी तरह जनविरोधी है। आरडीएसएस (Revamped Distribution Sector Scheme) में 20,000 करोड़ रुपये का जो खर्च प्रस्तावित है, उसे लोन में कन्वर्ट करने की बात कही गई है, जिसका बोझ अंततः प्रदेश की जनता को उठाना होगा।
आर्थिक खतरे और आम जनता पर असर
परिषद का आरोप है कि बिजली कंपनियों की इक्विटी को लॉन्ग टर्म लोन में बदला जा रहा है और तीन वर्षों तक निजी कंपनियों को उसका भुगतान नहीं करना होगा। इससे उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन पर भारी वित्तीय दबाव बनेगा और जनता पर दरों में वृद्धि का खतरा और बढ़ जाएगा। अवधेश वर्मा ने नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार और सदस्य संजय सिंह से इस प्रस्ताव को तत्काल खारिज करने और निजीकरण प्रक्रिया को पारदर्शिता के साथ जनहित में पुनः मूल्यांकन करने की मांग की है।