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हाथरस 29 अप्रैल । भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी भूमिका निभाने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म 1 दिसंबर 1886 को हाथरस के मुरसान रियासत के शाही जाट परिवार में हुआ था। वे राजा घनश्याम सिंह के तृतीय पुत्र थे। मात्र तीन वर्ष की आयु में उन्हें हाथरस के राजा हरनारायण सिंह ने गोद ले लिया था। राजा महेंद्र प्रताप बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने अलीगढ़ के गवर्नमेंट हाई स्कूल और फिर एमएओ कॉलेज (वर्तमान अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) में शिक्षा प्राप्त की। सर सैयद अहमद खां और राजा घनश्याम सिंह के बीच मित्रता के चलते उन्हें कॉलेज भेजा गया। कॉलेज में उन्हें चार कमरों का छात्रावास और कई नौकरों की सुविधाएं मिलीं। राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि वे जब कक्षा में जाते, तो नौकर किताबें लेकर चलते। हालांकि बीए की डिग्री पूरी नहीं कर सके क्योंकि पिता के निधन के बाद रियासत की जिम्मेदारी उठानी पड़ी। लेकिन उनके जीवन का असली मोड़ तब आया जब उन्होंने 1906 में कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में भाग लिया, जहां वे स्वदेशी आंदोलन से प्रभावित हुए।

क्रांति की राह पर कदम

राजा महेंद्र प्रताप सिंह देश की आजादी के लिए विदेशों में भी सक्रिय रहे। उन्होंने अफगानिस्तान में 1 दिसंबर 1915 को भारत की पहली अस्थायी सरकार की स्थापना की, जिसमें वे स्वयं राष्ट्रपति और मौलाना बरकतुल्ला प्रधानमंत्री बने। यह सरकार अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ वैकल्पिक भारतीय सरकार के रूप में जानी गई।

जिन्ना को बताया ‘जहरीला सांप’

1939 में महात्मा गांधी को लिखे एक पत्र में उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना को “जहरीला सांप” कहकर संबोधित किया और उन्हें गले न लगाने की चेतावनी दी थी।

विदेशी यात्रा और वापसी

राजा महेंद्र प्रताप सिंह 1920 से 1946 तक विदेशों में रहे और भारत की आज़ादी के लिए समर्थन जुटाते रहे। इस दौरान उन्होंने लेनिन से भी मुलाकात की, लेकिन रूस से उन्हें अपेक्षित सहायता नहीं मिली। अंग्रेजों द्वारा देश निकाला देने के बाद वे जापान में रहने लगे। अंततः 32 वर्षों के लंबे निर्वासन के बाद 1946 में वे भारत लौटे।

राजनीतिक सफर और सम्मान

उन्होंने 1957 के लोकसभा चुनाव में मथुरा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को हराया था। समाज सुधार की दिशा में भी उनका योगदान उल्लेखनीय रहा। उन्होंने प्रेम महाविद्यालय (वृंदावन), गुरुकुल, डीएस कॉलेज, और बीएचयू जैसे संस्थानों को भूमि दान में दी। राजा महेंद्र प्रताप सिंह को 1932 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। भारत सरकार ने उनके सम्मान में 1979 में डाक टिकट भी जारी किया। 7 जनवरी 1977 को एएमयू के शताब्दी समारोह में उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में सम्मानित किया गया।

अंतिम विदा

राजा महेंद्र प्रताप सिंह का निधन 29 अप्रैल 1979 को 92 वर्ष की आयु में हुआ। अब भारत सरकार ने उनके नाम पर अलीगढ़ में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की है, जिससे आने वाली पीढ़ियों को उनके योगदान की प्रेरणा मिलती रहे।

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