हाथरस 03 दिसंबर । आज बागला महाविद्यालय में जाट चेतना मंच व पश्चिमांचल विकाश संगठन के तत्वा अवधान मे एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो डा महावीर छौंकर ने की। सुनंदा महाजन, डॉ रजनीश, डॉ चंद्रशेखर रावल व संस्था सचिव अरविंद कुमार प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। मंच का संचालन डॉ रजनीश द्वारा किया गया। डॉ रजनीश द्वारा राजा महेंद्र प्रताप के प्रारंभिक जीवन से लेकर जिंद रियासत की राजकुमारी बलवीर कौर से विवाह का उल्लेख, उनकी निर्वासित जीवन उनका देश के प्रति त्याग, उनकी लेखनी, उनके विचार आदि का उल्लेख किया गया। उसके पश्चात अरविंद कुमार द्वारा उनके जीवन सम्पूर्ण वृतांत प्रस्तुत किया गया। राजा साहब द्वारा कैसे अफगान जाकर बरकतुल्ला भोपाली के साथ भारत की प्रथम अंतरिम सरकार का गठन किया, जिसमें बरकतुल्ला को प्रधानमंत्री व खुद को राष्ट्रपति बनाया गया तथा अफगानिस्तान के शासक दोस्त मोहम्मद द्वारा मदद प्राप्त कर रूस जापान जर्मन चीन आदि देशों में अपने दूतावास स्थापित किए। उन्होंने बताया कि उनका बाल्य काल वृंदावन के महल में राजसी ठाठ के साथ बीता उनकी प्रारंभिक शिक्षा अलीगढ़ की कायस्थ पाठशाला में हुई बचपन उनको उर्दू और इंग्लिश सीखाने के मौलाना आते थे राजा सहाब की तीनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी इसी वज़ह से राजा साहब एक अच्छे लेखक भी थे उनको 1932 के पीस नोबेल के भी लिये नॉमिनेट किया गया था परन्तु उस वर्ष किसी को भी नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया था, उन्होंने ही विश्व संघ विचार की अवधारणा सर्वप्रथम दी साथ ही अफगान में अपनी आज़ाद हिंद सेना की स्थापना की अंग्रेजी हुकूमत द्वारा निर्वासित करने पर अपने अबोध बच्चों को रोता बिलखता छोड़ 32 वर्ष निर्वासित जीवन जिया। अपनी सारी सम्पत्ति देश सेवा में दान दी। आप ही ने भारत के प्रथम पॉलीटेक्निक महाविद्यालय की स्थापना अपने पुत्र प्रेम के नाम पर के सी घाट वृन्दावन में अपने महल के प्रांगण में की राजा साहब सभी धर्मा में आस्था रखते थे तथा उनका मानना था कि हम सब एक ईश्वर की संतान है तथा राजा साहब ने प्रेम धर्म की भी स्थापना की।
अरविंद कुमार में अपने संबोधन में कहा कि धन्यवाद की पात्र वर्तमान सरकार है, जिसने अलीगढ़ विश्वविद्यालय का नाम राजा साहब के नाम पर रखा। परंतु नई युवा पीढ़ी उनके कार्यों से प्रेरित होकर अच्छे संस्कारों पर चले, इसके लिए हम राजा साहब के विचारों को आगे ले जाने की जरूरत है। साथ ही शासन द्वारा उनके हाथरस किले पर एक मूर्ती की स्थापना की मांग की गई। अंत में उनके द्वारा एक शेर पढ़ा गया ” कितना बदनशीब है जफर दफ्न के लिए दो गज जमीं भी ना मिल सकी कू ए यार में ” इसके पाश्चात्य अंतिम संबोधन प्राचार्य डॉ महावीर छौंकर द्वारा दिया गया। उन्होंने उनके जीवन के उच्य मूल्यों पर जलने के लिए युवा पीढी को प्रेरित किया। साथ ही राजा साहब की जयंती को विश्विद्यालय द्वारा व शासन द्वारा मनाए जाने के लिए भी महाविद्यालय द्वारा प्रयास करने के बात कही तथा विश्वविद्यालय परिसर में महामना मदन मोहन मालवीय की तरह मूर्ति स्थापना करने की बात कही। कार्यक्रम में बगला महाविद्यालय के सभी शिक्षक उपस्थित रहे जिनमें प्रमुख रूप से अन्य उपस्थित शिक्षक डॉ अहमद इकबाल, दीपा ग्रोवर, राजेश शर्मा आदि मौजूद थे।