Hamara Hathras

Latest News

मेरठ 03 दिसंबर । तीर्थधाम चिदायतन प्रतिष्ठा महा-महोत्सव के तीसरे दिन का शुभारम्भ शांतिजाप और भगवान की पूजन-वंदन के साथ हुआ। इन्द्र सभा में मंगलाचरण के बाद ‘अरहन्तो भगवंत इन्द्र महिता…, तीनभुवन के नाथ पधारे… आदि गीतों पर ब्राह्मी सुन्दरी विद्यानिकेतन की कन्याओं व अष्टदेवियों द्वारा सुंदर नृत्य प्रस्तुति दी गई। सभा के मध्य अचानक सौधर्म इन्द्र का सिंहासन कम्पायमान हुआ और घंटनाद आदि के साथ सौधर्म इंद्र को बाल तीर्थंकर के जन्म का स्मरण हुआ। सर्वत्र एक प्रकार का नूतन आल्हाद छा गया। जहां एक ओर स्वर्ग के दिव्य वाद्यों के साथ सौधर्मेन्द्र ने ऐरावत हाथी पर बैठकर हस्तिनापुर नगरी की तीन प्रदक्षिणाएं दीं। वहीं दूसरी ओर भगवान के पिता महाराजा अश्वसेन के दरबार में एक दूत ने अपनी टोली के साथ ‘बाज्यो रे ढोल… गीत पर भगवान के जन्म की शुभ सूचना के साथ मनमोहक नृत्य प्रस्तुती हुई। इस मौके पर सभी श्रद्धालुओं ने अपनी जगह पर खड़े होकर जमकर नृत्य किया।
प्रभु के जन्मकल्याणक महोत्सव के शुभ अवसर पर सभी इंद्र-इंद्राणि एवं राजा-रानी हाथी पर सवार होकर ढ़ोल, नगाड़ों एवं धर्मध्वज आदि लेकर पाण्डुकशिला की ओर रवाना हुए। वहां बाल तीर्थंकर को पाण्डुकशिला पर विराजमान कर, उनका अनेक कलशों से अभिषेक किया गया। इस मौके पर श्री रजनीश जैन, नीरू केमीकल्स, दिल्ली ने पहला कलश, श्री निमेश भाई परिवार, मुम्बई ने दूसरा कलश, श्री अजय जैन, मुरादाबाद ने तीसरा कलश, श्री सुनील जैन इटारसी परिवार ने चौथा कलश, श्री विशुभाई परिवार, सूरत ने पांचवां कलश व श्री मनुभाई लंदन हस्ते श्री किरीट भाई गोसालिया लंदन ने छठवें कलश से भगवान का अभिषेक कर धर्मलाभ लिया। सभी ने झूमझूमकर प्रभु की भक्ति की और जयकारों के साथ पुनः कार्यक्रम पाण्डाल में प्रवेश किया। दिव्य ऐरावत हाथी पर सवार सौधर्म इंद्र-इंद्राणी ने मंच पर पहुंचकर बाल प्रभु को उनकी माता को सौंपा और सौधर्म इंद्र का पात्र निभा रहे श्री स्वप्निल जैन ने ताण्डव नृत्य प्रस्तुत किया। सायंकालीन सत्र में जिनेन्द्र भक्ति का आयोजन हुआ। प्रवचन सत्र में प्रथम वक्ता के रूप में पण्डित राजेन्द्र जैन, जबलपुर एवं दूसरे वक्ता के रूप में पण्डित नीलेश जैन, मुम्बई ने अपना वक्तव्य दिया। तीसरे दिन का मुख्य आकर्षण बाल प्रभु के लिए बनाया गया विराट, भव्य एवं विशाल पालना रहा। इस पालना झूलन कार्यक्रम में सभी ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। पहले कई प्रान्तों से आए राजाओं ने भगवान के माता-पिता को कई भेंट प्रस्तुत कीं और फिर सभी ने एक-एक कर बाल प्रभु को पालने में झुलाया। विशाल मंच पर सजा विराट पालना अलग ही छटा बिखेरे हुए था। सभी ने प्रभु को पालना झुला कर खुद को धन्य महसूस किया और भावुकता के इस क्षण को सभी ने दिल खोलकर मनाया। इस दौरान पाण्डाल में उपस्थित सभी श्रद्धालुओं ने भी भरपूर नृत्य किया।

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Posts

You cannot copy content of this page