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सादाबाद 01 दिसंबर । क्षेत्र के गांव कुकटई में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में भागवत आचार्य द्वारा गिरिराज जी की कथा का वर्णन करते हुए इंद्र भगवान का घमंड चूर करने की कथा का वृतांत सुनाते हुए गिरिराज जी की पूजा अर्चना कराई तथा उसके बाद उद्धव प्रसंग की लीला का वर्णन किया। गांव कुकटई में श्यामवीर सिंह के संयोजन में चल रही भागवत कथा में भागवत आचार्य नरेंद्र चंद्र शास्त्री ने लोगों को भागवत का श्रवण करते हुए बताया कि ब्रजवासी इंद्र को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ की तैयारी कर रहे थे। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि आप इंद्र के लिए यज्ञ क्यों कर रहे हो । नंद बाबा ने कहा कि अगर हम इंद्र के लिए यज्ञ नही करेंगे तो इंद्र देवता वर्षा नहीं करेंगे। अगर इंद्र वर्षा नहीं करेंगे तो हमारे खेत में कुछ पैदा नहीं होगा ।भगवान श्री कृष्ण ने कहा इंद्र देव का यह कर्तव्य है कि भगवान ने उसे यह सेवा दी है । अगर तुम्हें यज्ञ करना है तो गिरिराज गोवर्धन के लिए करो। भगवन कृष्ण ने सभी ब्रजवासियों को गिरिराज के लिए यज्ञ करने के लिए मना लिया।गिरिराज गोवर्धन भगवान विष्णु स्वरूप है । भगवान कृष्ण ने गिरिराज के लिए यज्ञ करके यह सिद्ध किया। अगर भगवान को प्रसन्न कर लिया जाए तो देवी देवताओं को प्रसन्न करने की आवश्यकता नहीं रह जाती। कथा में गिरिराज को 56 भोग लगाया गया और गिरिराज उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाते हुए सभी के द्वारा गोवर्धन की परिक्रमा भी की गई। इसके उपरांत उन्होंने उद्धव चरित्र का वर्णन किया। उद्धव साक्षात ब्रहस्पति के शिष्य थे। मथुरा प्रवास में जब श्री कृष्ण को अपने माता-पिता तथा गोपियों के विरह दुख का स्मरण होता है तो उद्धव को नंदवक गोकुल भेजते है। गोपियों के वियोग-ताप को शांत करने का आदेश देते है। उद्धव सहर्ष कृष्ण का संदेश लेकर ब्रज जाते है और नंदिदि गोपों तथा गोपियों को प्रसन्न करते हैं और श्री कृष्ण जी के प्रति गोपियों के कांता भाव के अनन्य अनुराग को प्रत्यक्ष देखकर उद्धव अत्यंत प्रभावित होते है। वे श्री कृष्ण का यह संदेश सुनाते हैं कि तुम्हे मेरा वियोग कभी नहीं हो सकता,क्योंकि मैं आत्मरूप हूॅं। सदैव मेरे ध्यान में लीन रहो। तुम सब वासनाओं से शून्य शुद्ध मन से मुझ में अनुरक्त रहकर मेरा ध्यान करने में शीघ्र ही मुझे प्राप्त करोगी।

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