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नई दिल्ली 27 सितंबर । जनवरी से इस साल अब तक विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 69 अरब डॉलर की वृद्धि हुई है। विदेशी मुद्रा भंडार का यह बफर घरेलू आर्थिक गतिविधियों को वैश्विक झटकों से बचाने में मदद करता है। शीर्ष बैंक के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, समीक्षाधीन हफ्ते के दौरान भारत की विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां (एफसीए), जो विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक है, 605.686 अरब डॉलर रही। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, देश का विदेशी मुद्रा भंडार 20 सितंबर को समाप्त सप्ताह में 2.838 अरब डॉलर बढ़कर 692.296 अरब डॉलर के नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। पिछले सप्ताह विदेशी मुद्रा भंडार 689.458 अरब डॉलर था। जनवरी से इस साल अब तक विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 69 अरब डॉलर की वृद्धि हुई है। विदेशी मुद्रा भंडार का यह बफर घरेलू आर्थिक गतिविधियों को वैश्विक झटकों से बचाने में मदद करता है। शीर्ष बैंक के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, समीक्षाधीन हफ्ते के दौरान भारत की विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां (एफसीए), जो विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक है, 605.686 अरब डॉलर रही। शुक्रवार के आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में स्वर्ण भंडार 61.988 अरब डॉलर का है। वर्ष 2023 में भारत ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार में लगभग 58 बिलियन अमेरिकी डॉलर जोड़े थे। इसके विपरीत, 2022 में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 71 बिलियन अमरीकी डॉलर की गिरावट आई थी। फॉरेक्स रिजर्व, या विदेशी मुद्रा भंडार, किसी देश के केंद्रीय बैंक या मौद्रिक प्राधिकरण की आरे से रखी गई संपत्तियां हैं। विदेशी मुद्रा भंडार आम तौर पर आरक्षित मुद्रा रखते जाते हैं, आमतौर पर इसमें अमेरिकी डॉलर होते हैं, कुछ हद तक यूरो, जापानी येन और पाउंड स्टर्लिंग का भी रिजर्व रखा जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा बाजारों पर बारीकी से नज़र रखता है और विनिमय दर में अत्यधिक अस्थिरता को नियंत्रित करने के लिए हस्तक्षेप करता है। रुपये के मूल्य में भारी गिरावट को रोकने के लिए RBI अक्सर डॉलर की बिक्री सहित तरलता प्रबंधन के माध्यम से बाजार में हस्तक्षेप करता है। एक दशक पहले, भारतीय रुपया एशिया की सबसे अस्थिर मुद्राओं में से एक था। हालांकि, उसके बाद यह सबसे स्थिर मुद्राओं में से एक बन गया है। यह परिवर्तन भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के प्रबंधन का प्रमाण है। आरबीआई रणनीतिक रूप से डॉलर खरीद रहा है जब रुपया मजबूत होता है और जब यह कमजोर होता है तो बेच रहा है। यह हस्तक्षेप रुपये के मूल्य में बड़े उतार-चढ़ाव को कम करता है, जिससे इसमें स्थिरता आती है। कम अस्थिर रुपया निवेशकों के लिए भारतीय परिसंपत्तियों को अधिक आकर्षक बनाता है।

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