Categories: साहित्य

सुरजीत मान जलईया सिंह की नई रचना ” प्रधान ”

पीठ पीछे जानता है
क्या क्या कहते लोग हैं?
सामने आता नहीं है
कोई भी रघुराज के।

जीतकर आया प्रधानी
रोब थानेदार का।
रोज दुगना बढ़ रहा है
कद भी अब किरदार का।
छटपटाती है खजूरी
बोलती कुछ भी नहीं
जैसे पंजों में फंसी हो
एक चिड़िया बाज़ के।
सामने आता नहीं है
कोई भी रघुराज के।

आधा राशन ही मिलेगा
आज से हर कार्ड पर।
और अब हफ्ता बसूली
होगी हर इक बार्ड पर।
चुप खड़े सब देखते हैं
एक दूजे की तरफ
कोई भी टिकता नहीं है
आगे अब परबाज के।
सामने आता नहीं है
कोई भी रघुराज के।

अब तो सीधे मुंह किसी से
बात भी करता नहीं।
और बिन पैसे किसी पर
हाथ भी धरता नहीं।
जो लिए फरियाद जाते
उनको सुनना ये पड़ा।
देखिए तो आ गये हैं
काम के ना काज के।
सामने आता नहीं है
कोई भी रघुराज के।

सुरजीत मान जलईया सिंह

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