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देशभर के वकीलों के लिए बड़ी राहत, अब एनरोलमेंट के लिए वकीलों से ज्यादा फीस नहीं ले सकेंगे बार काउंसिल, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

नई दिल्ली 30 जुलाई । आज नए वकीलों के एनरोलमेंट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य बार काउंसिल एडवोकेट्स एक्ट में दिए प्रावधान से ज्यादा राशि नहीं ले सकते। एक्ट की धारा 24 में सामान्य वर्ग के लिए 750 और SC-ST के लिए 125 रुपये की एनरोलमेंट फीस दी गई है, लेकिन हर राज्य में बार काउंसिल 15 से 45 हजार तक फीस ले रहे थे। कोर्ट ने कहा कि चूंकि संसद ने नामांकन शुल्क तय कर रखा है, इसलिए बार काउंसिल इसका उल्लंघन नहीं कर सकती। धारा 24(1)(f), एक राजकोषीय विनियामक प्रावधान है इसलिए इसका सख्ती से पालन होना चाहिए। नामांकन के लिए अतिरिक्त शुल्क निर्धारित करके, राज्य बार काउंसिल ने नामांकन के लिए अतिरिक्त मूल दायित्व बनाए हैं, जो अधिवक्ता अधिनियम के किसी भी प्रावधान से संबंधित नहीं हैं।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की ओर से लिखे गए फैसले में कहा गया है कि नामांकन के लिए पूर्व शर्त के रूप में अत्यधिक शुल्क वसूलना, विशेष रूप से कमजोर वर्गों से संबंधित लोगों के लिए, उनके पेशे को आगे बढ़ाने में बाधाएं पैदा करता है।  चूंकि उम्मीदवारों के पास नामांकन के समय बहुत कम एजेंसी होती है, इसलिए उन्हें बार काउंसिल की ओर से की गई अत्यधिक मांगों को पूरा करने के लिए मजबूर किया जाता है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस फैसले का केवल भावी प्रभाव होगा, जिसका मतलब है कि बार काउंसिल को अब तक वैधानिक राशि से अधिक एकत्र किए गए नामांकन शुल्क को वापस करने की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बार काउंसिल अधिवक्ताओं के लिए किए जाने वाले काम के लिए अन्य शुल्क लेने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन उन्हें नामांकन शुल्क के रूप में नहीं वूसला जा सकता।

इस याचिका पर हो रही थी सुनवाई

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच जिसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा शामिल थे, विभिन्न राज्य बार काउंसिल की ओर से लगाए जा रहे अलग-अलग नामांकन शुल्क को अत्यधिक बताते हुए चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर फैसला कर रही थी। इस मुद्दे की मुख्य याचिका का शीर्षक गौरव कुमार बनाम भारत संघ है। याचिकाओं के इस समूह में एक ही सवाल उठाया गया है कि क्या नामांकन शुल्क के रूप में अत्यधिक शुल्क वसूलना अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 24(1) का उल्लंघन है।

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