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नई दिल्ली 02 दिसंबर । दूरसंचार विभाग द्वारा सभी स्मार्टफोन में ‘संचार साथी’ ऐप का प्री-इंस्टॉलेशन अनिवार्य किए जाने के आदेश के बाद राजनीतिक घमासान तेज हो गया है। सरकार के अनुसार यह कदम उपभोक्ता सुरक्षा को मजबूत करने के लिए है, जबकि विपक्ष ने इसे ‘निगरानी का नया माध्यम’ बताते हुए आदेश को तुरंत वापस लेने की मांग की है। दूरसंचार विभाग ने 28 नवंबर को स्मार्टफोन निर्माताओं और आयातकों को निर्देश दिया कि भारत में बनने या आयात होने वाले प्रत्येक फोन में संचार साथी ऐप पहले से इंस्टॉल हो। जो फोन पहले से बाजार में हैं, उनमें इस ऐप को अगले सॉफ्टवेयर अपडेट के माध्यम से जोड़ा जाए। कंपनियों को 90 दिन के भीतर इसे लागू करना होगा और 120 दिन में रिपोर्ट पेश करनी होगी। आदेश में यह भी कहा गया कि ऐप को मोबाइल में फुल फंक्शन के साथ उपलब्ध होना चाहिए और यह डिसेबल या हटाया नहीं जा सके। सरकार के अनुसार संचार साथी ऐप मोबाइल उपयोगकर्ताओं को साइबर फ्रॉड से बचाने, चोरी हुए मोबाइल की ट्रैकिंग, नकली IMEI पकड़ने और अपने नाम पर चल रहे मोबाइल कनेक्शन की जांच जैसे कई सुरक्षा फीचर्स प्रदान करता है। DoT के आंकड़ों के मुताबिक ऐप और पोर्टल के माध्यम से अब तक 37 लाख से अधिक चोरी/खोए मोबाइल ब्लॉक, 22 लाख से अधिक फोन ट्रैक, 3 करोड़ फर्जी मोबाइल कनेक्शन बंद, तथा 16.97 लाख व्हाट्सएप अकाउंट निष्क्रिय किए गए हैं।

विपक्ष का विरोध

कांग्रेस ने इस कदम को असंवैधानिक बताते हुए इसे लोगों की निजता पर गंभीर हमला बताया है। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि ऐसा सरकारी ऐप, जिसे न हटाया जा सके न डिसेबल किया जा सके, “नागरिकों की गतिविधियों की निगरानी” करने वाला टूल बन सकता है। शिवसेना (यूबीटी) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने इसे “सरकार का बिग बॉस मोमेंट” करार दिया।

सरकार की सफाई

केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने विपक्ष के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि यह ऐप पूरी तरह वैकल्पिक है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यूज़र चाहे तो इसे किसी भी सामान्य ऐप की तरह अनइंस्टॉल कर सकता है। सरकार का उद्देश्य सिर्फ उपभोक्ता सुरक्षा को मजबूत करना है, न कि निगरानी करना। वहीं, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि विपक्ष अनावश्यक विवाद खड़ा कर रहा है और सरकार के पास चर्चा करने के लिए कई महत्वपूर्ण विषय पहले से मौजूद हैं। एक ओर सरकार इसे साइबर सुरक्षा और उपभोक्ता संरक्षण के लिए आवश्यक कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला और निगरानी का नया तरीका मान रहा है। आदेश वापस होगा या लागू रहेगा, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा, लेकिन फिलहाल संचार साथी ऐप को लेकर देश की राजनीति में गर्माहट जरूर बढ़ गई है।

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