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सिकंदराराऊ (हसायन) 14 नवम्बर । विकासखंड क्षेत्र के गाँव जाऊ के नहर पुल स्थित वन विभाग के पौधशाला परिसर में एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य पौधशाला प्रबंधन और सफल वृक्षारोपण की तकनीकों की विस्तृत जानकारी प्रदान करना था। कार्यक्रम का नेतृत्व क्षेत्रीय वनाधिकारी दिलीप कुमार (रेंजर) ने किया। पौधशाला प्रभारी श्रीचंद ने महिला-पुरुष कर्मचारियों तथा किसानों को पौधशाला की संपूर्ण प्रक्रिया, वृक्षारोपण के वैज्ञानिक तरीके और पौध तैयार करने के चरणों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। श्रीचंद ने बताया कि पौधशाला निर्माण के लिए अक्टूबर माह सबसे उपयुक्त माना जाता है। सबसे पहले खेत की जुताई कर 10×10 मीटर के प्लाट बनाए जाते हैं और सिंचाई नालियाँ तैयार की जाती हैं। थैली भरने के लिए एक ट्रॉली गोबर खाद, दो ट्रॉली बालू और चार ट्रॉली मिट्टी को उर्वरक एवं कीटनाशक के साथ मिलाकर मिश्रण तैयार किया जाता है। इसके बाद 6×9 आकार की थैलियों को मिश्रण से भरा जाता है। अक्टूबर–नवंबर में उन बीजों की बुवाई की जाती है जो अधिक अंकुरित होते हैं। बीज अंकुरित होने तक दिन में दो से तीन बार सिंचाई की जाती है। कुछ पौधे प्रेक लगाकर तो कुछ कटिंग के माध्यम से तैयार किए जाते हैं। सर्दी से सुरक्षा के लिए रात में नेट पट्टी लगाई जाती है। फरवरी में पौधों का स्थान परिवर्तन (Transplantation) किया जाता है। जिन थैलियों में पौधे नहीं निकलते, उनमें पुनः बीज बोए जाते हैं। नियमित सिंचाई व निराई के बाद जून माह तक पौध तैयार हो जाती है और एक सप्ताह बाद वृक्षारोपण के लिए उपयुक्त मानी जाती है। श्रीचंद ने बताया कि एक जुलाई से 15 अगस्त तक वृक्षारोपण का समय सर्वोत्तम है। इन वैज्ञानिक प्रक्रियाओं का पालन करने से वृक्षारोपण 100% सफल होता है। प्रशिक्षण कार्यशाला में क्षेत्र के प्रधान प्रतिनिधि, ग्रामीण महिलाएँ, वन विभाग के कर्मचारी उपस्थित रहे। कार्यक्रम में क्षेत्रीय वनाधिकारी दिलीप कुमार, वन दरोगा सर्वेश कुमार, बीट प्रभारी श्रीचंद और चंद्रपाल सिंह विशेष रूप से शामिल रहे।

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